Tanzania के रहने वाले Robert Msongo हिंदुस्तान के विभिन्न विषयों पर शोध कर रहे थे और हिंदी भाषा पर अपनी पकड़ बनाने की कोशिश में लगे थे। मेरे साथ ही Tanzania से मुंबई आ रहे थे। अपनी टैबलेट पर शायद कोई बहुत पुरानी हिंदी ebook पढ़ रहे थे और ऐसे में, लगता है, 'गँवार' शब्द से टकरा गए।
मैंने समझाया "गँवार चीज़ नहीं है, एक शख़्सियत है। 1960 के दशक तक यह भारत में बहुतायत में मिलती थी और इस शब्द का प्रयोग भी बहुत होता था। एक शब्द में इसका अर्थ बताना बड़ा मुश्किल है। यह शख़्सियत कई (अव) गुणों का मिश्रण होती थी। जैसे मूर्ख, अनपढ़, असभ्य, उजड्ड, जड़बुद्धि, अनाड़ी, जाहिल, पागल आदि। यह शब्द अपने अंदर अनेकों अर्थ छुपा कर रखता था और जब अत्यधिक क्रोध की दशा में, समझ में नहीं आता था कि सामने वाले को सबसे भद्दी (मगर सभ्य) गाली कौन सी दें, इस शब्द का प्रयोग किया जाता था। सामने वाला भी अपनी कमियों या गलतियों के अनुसार इनमें से अपने ऊपर लागू अर्थ चुन लिया करता था।"
"मतलब यह एक गाली थी ?"
"नहीं। वे वास्तव में शक्ल सूरत से इंसान होते थे। लेकिन उन गँवार लोगों ने अपने व्यक्तित्व से इस शब्द को इतनी परिभाषाओं से सुसज्जित किया कि यह गाली की तरह प्रयोग होने लगा था। स्कूल में, कॉलेज में, ऑफिस में, घर पर, दुकान पर, सड़क पर, मेले में....सब जगह ये पाये जाते थे। किसी को गँवार बुलाने का मतलब था कि वह व्यक्ति अन्य सभी सामान्य लोगों की तुलना में बहुत निम्न कोटि का है। किसी के ऊपर अपना क्रोध प्रगट करने का ये अचूक तरीका था। अपने लिए गँवार की उपाधि सुनना कोई भी पसंद नहीं करता था। एक और बात, वास्तविक गँवार व्यक्ति में सुधार के कोई परिलक्षण नहीं होते थे। यह माना जाता था कि once a गँवार always a गँवार।"
Robert मुझे चुपचाप घूरता रहा। शायद गँवार की अत्यंत गूढ़ परिभाषा उसको समझ में नहीं आ रही थी।
"आपने कहा ये लोग 1960 के दशक में पाये जाते थे तो क्या आजकल हिंदुस्तान में गँवार नहीं होते ?"
मैंने उसे आगे समझाया मानो मैंने गँवारों पर कोई शोध किया हो, "जैसे जैसे देश का विकास होता गया, शिक्षा बढ़ने लगी, अशिक्षित कम होने लगे। देश के कोने कोने में टीवी, फ़ोन, इंटरनेट इत्यादि पहुचने लगे जो इन का ज्ञान वर्धन करने लगे।"
Robert मुस्कुराया "तो अब गँवार ख़त्म हो गए ?"
"नहीं। वह upgrade हो गए और आज के समाज के Modern गँवार कहलाते हैं। अब हर जगह पढ़े-लिखे गँवार दिखाई पड़ते हैं। कहने को शिक्षित पर आदतें वही गँवारों वाली। शिक्षा के अतिरिक्त बाकी सब (अव)गुण गँवारों वाले हैं।"
"मैं कुछ समझा नहीं।"
"ठीक है। अभी तो आप कुछ वक्त मेरे साथ गुजारेंगे। मैं आपको उदहारण सहित समझाता हूँ।"
थोड़ी देर बाद, जब हमारा विमान Mumbai हवाईअड्डे पर उतरा तो ज़मीन छूते ही announcement हुआ "मुंबई के छत्रपति शिवाजी हवाईअड्डे पर आपका स्वागत है। यात्रियों से निवेदन है कि यान के रुकने तक वे कुर्सी की पेटी बांधे रखें और किसी भी electronic उपकरण का प्रोयोग न करें। .... "
अचानक कई सीटों से कट-कट कर के कुर्सी की पेटियां खुलने की आवाज़ें आने लगीं। यान अभी भी कम से कम 250 कि.मी. प्रति घंटे की रफ़्तार से भाग रहा था।
"यह देखो Robert ! मॉडर्न गँवार। अभी announcement ख़त्म भी नहीं हुआ और इन गँवारों ने कुर्सी की पेटी खोल लीं हैं। ये सब अपने आप को शिक्षित कहते हैं पर हरकतें हैं white-collar गँवारों वाली। यह announcement इनकी सुरक्षा के लिए ही हो रहा है पर शायद आदेशों का.… यहाँ तक कि निवेदन का पालन करना इनकी इज़्ज़त के खिलाफ है। या ये लोग यह साबित करना चाहते हैं कि जो लोग अभी भी पेटी बांधे हैं वे अव्वल दर्जे के मूर्ख हैं। इतनी देर पेटी बंधी रही तो कुछ नहीं मगर यह आखिर के 3 मिनट इनको भारी पड़ रहे हैं। इनकी बेसब्री से तो कोई भी यह अंदाज़ा लगा सकता है कि ये लोग संडास में घुसने से पहले ही पजामा उतार फेंकते होंगे। घर वाले कितना भी समझाएं कि संडास के अंदर जा कर पजामा उतारो, मगर ये ठहरे गँवार, जो कहोगे उसका उल्टा करेंगे। Ooopz … मैंने शायद कुछ गन्दा उदाहरण दे दिया।"
Robert प्रसन्न था "नहीं, Ooopz की कोई बात नहीं कही आपने। उदाहरण सटीक था और एक मिनट में इनकी मानसिकता मेरी समझ में आ गई। यह सब मन से sick हैं, यही इनकी मानसिकता है।"
"एक और उदाहरण देखो Robert ....सब से यह आग्रह किया गया था कि अपने अपने electronic उपकरण और mobile फ़ोन बंद रखें मगर हवाईजहाज़ के पहिये ज़मीन पर छूते ही कई फोनों पर SMS और WhatsApp की पी पी सुनाई देने लग गई। कुछ लोगों ने घर या दफ्तर में खबर करनी शुरू कर दी की गँवार की सवारी पधार गई है और कुछ अन्य ने अपनी अपनी गाड़ियां मँगाने के लिए फ़ोन पर बात भी शुरू कर दी। यह सब भी आज के ज़माने के पढ़े-लिखे गँवार हैं जिनके भेजे में सही बात उतरती ही नहीं है। चलेंगे हवाईजहाज़ में लेकिन गंवारपन नहीं छोड़ेंगे।"
Robert ख़ामोशी से सब देखता रहा फिर बोला "कोई इनको समझाता क्यों नहीं ?"
मुझे हँसी आ गई "भूल कर भी प्रयास नहीं करना। मैंने बताया था गंवार स्वयं को नहीं बल्कि दुनिया को बेवकूफ़ समझते हैं। किसी का भी टोकना उनको नागवार गुज़रता है क्योंकि वे यह समझते हैं कि जो वह कर रहे हैं वही सही है। क्योंकि इन्हें असभ्य और पागल का भी ख़िताब मिला है, टोकने वाले की ये क्या गति बना दें मालूम नहीं। यह लोग गँवार पैदा होते हैं, गंवारपन में जीते हैं और किसी गँवारिता की हरकत की वजह से ही इस दुनिया से कूच कर जाते हैं। इनकी तो बस मूर्खता का आनंद उठाओ। By the way, अभी महा-गँवार का प्रगट होना बाकी है।"
मैंने बस इतना कहा ही था कि 2-3 यात्री अपनी सीट से उठ कर ऊपर का कक्ष खोलने लगे। ध्यान रहे… अभी यान रुका नहीं था। यान परिचारिका ने लगभग चिल्लाते हुए निवेदन किया कि वे लोग अपनी अपनी सीट पर वापस बैठ जाएं और pilot के आदेशों का इंतज़ार करें। परन्तु उन महा-गंवारों ने एक न सुनी। मेरे मुँह से अनायास ही निकल गया "भाईसाहब! हिंदी और अंग्रेजी में वह बेचारी आपसे विनम्र निवेदन कर रही है पर आपकी समझ में कुछ नहीं आ रहा है ? अपना ही सामान उठा रहे हैं या किसी दूसरे का लपकने की जल्दी है ? हो सके तो अपनी हाजत को रोक लें। Airport पर संडास बड़े साफ़ सुथरे हैं। साथ साथ चलेंगे।"
महा-गँवारों ने मुझे घूर कर देखा। एक बोला "आपको क्या तकलीफ़ है ?"
मैंने कहा "मुझे तो कोई तकलीफ़ नहीं है भाई, मगर आप जिस तरह से कूद रहे हैं उससे यह लगता है आपको ज़रूर बैठने वाली जगह में कुछ तकलीफ़ है। इसका जल्दी इलाज कराइये नहीं तो कुछ समय बाद सीट पर टायर रख कर बैठना पड़ेगा।"
तब तक कुछ अन्य बैठे हुए यात्रियों ने मेरी आवाज़ में आवाज़ मिला दी तो उन्होंने चुपचाप बैठने में ही भलाई समझी वरना वह अपनी गँवारिता की पराकाष्ठा का प्रदर्शन करने की ठान चुके थे।
हवाईजहाज़ के रुकते ही मानो छोटे बच्चों के स्कूल की छुट्टी की घंटी बज गयी। धड़ाधड़ ऊपर के कक्ष खुलने लगे और लोग अपने अपने स्कूल बैग कन्धों पर लटका कर तैयार। अरे भाई! जानते हैं कि दरवाज़ा खुलने में, सीढ़ी लगने में 10-12 मिनट का समय तो लग ही जाता है फिर आड़े तिरछे हो कर गलियारे में खड़े होने से बेहतर, आराम से अपनी सीट पर थोड़ी देर और बैठे रहो। मगर नहीं, गंवारों को यह कतई गवारा नहीं।
Robert ने अपना डर ज़ाहिर किया "इतनी जल्दी में हैं कहीं ये लोग खिड़कियों के रस्ते निकलने का इरादा तो नहीं रखते हैं ?"
"कोई ताज्जुब नहीं। Announcement करा दो कि खिड़की से निकलना मना है…अभी सब के सब खिड़की से ही कूद जायेंगे। इन्हें तो बस उल्टा काम करना है।"
Robert के चेहरे पर प्रसन्नता थी "अब थोड़ा थोड़ा गँवार का अर्थ समझ में आ रहा है। काफ़ी उदाहरण देखने को मिल गए।"
"अभी तो इब्तिदा है। यह आधुनिक गंवारों का एक छोटा सा sample है। आगे और भी variety दिखेगी।" मैंने उसे आश्वस्त किया।
Conveyor belt पर सामान लेने के लिए भीड़ लगी थी। सबसे smart गँवार परिवार belt की शुरुआत में ही जा के खड़े हो गए थे कि जैसे ही उनका सामान आएगा वे तुरंत उठा कर निकल लेंगे। बाकी बेवक़ूफ़, जो belt के इर्द गिर्द खड़े हो गए थे वे अपने अपने सामान का इंतज़ार करेंगे।
और वाकई, हम लोग बहुत देर तक अपने सामान का इंतज़ार करते रहे लेकिन वह नहीं आया। जब करीब करीब सारी भीड़ छंट गई और केवल 6-7 यात्री ही रह गए तो हम सब को परेशानी हुई की आखिर हमारा सामान कहाँ रह गया ? स्टाफ से सहायता मांगी। उन बेचारों ने पूरी conveyor belt का चक्कर लगाया और आवाज़ दे कर हमें वहां बुलाया जहाँ से belt शुरू होती थी।
"ये कुछ सामान यहाँ रखा है sir. देखिए आप में से किसी का है ?"
और लो भइया ये तो lo and behold हो गया। जितने दुखी यात्री बचे थे (हमें मिला कर), उन सब का सामान belt के किनारे, ज़मीन पर बिखरा पड़ा था।
यह देन थी हमारे स्मार्ट गँवारों की जो belt की शुरुआत में ही खड़े हो कर belt से सामान उतार उतार कर देखते रहे कि उनका है कि नहीं। अपना तो बीन के ले गए लेकिन दूसरों का वापस belt पर रखने के बजाए ज़मीन पर ही छोड़ कर चले गए।
वाह स्मार्ट गँवार ! तुम्हारे पुरखे लोटा ले कर जाते थे और रेलवे पटरी के किनारे मलबा छोड़ कर चले जाते थे.…उससे मिलता जुलता काम तुम करते हो, लेकिन... हवाईअड्डे पर। जिधर से गुज़र जाओ वहीँ अपने DNA की छाप छोड़ देते हो।
Prepaid taxi के लिए लम्बी लाइन लगी थी। हम भी लाइन में लग लिए। वहां भी मॉडर्न गँवार ने अपनी मौजूदगी का एहसास करा दिया। भैय्या आए और बिना लाइन में लगे, सीधे खिड़की पर पहुँच गए। यह लोग इस बात का फ़ायदा उठाते हैं कि इनको तो कोई टोकेगा नहीं। वो जो लाइन में लगे हैं वे बेवक़ूफ़ हैं सिर्फ़ यह ही अक्लमंद हैं।
मुझसे न रहा गया टोक दिया, "जितने लोग लाइन में लगे हैं उन सब को भी जल्दी है भाईसाहब ! आप को कुछ ज़्यादा जल्दी है क्या ?"
इस तरह टोका जाना उनको नागवार गुज़रा, "आपको कोई परेशानी है ?"
"नहीं। मैं सिर्फ़ यह जानना चाहता हूँ कि आप पैदायशी जल्दबाज़ हैं क्या ? हो सकता है आप अपने बड़े भाई से भी पहले पैदा हो गए हों ?"
पब्लिक हंस दी। वह तो अच्छा हुआ की मेरा वज़न 110 किलो था और भैय्या मात्र 55 किलो के - exactly half. चुपचाप अपने गंवारपन को ढकते हुए पीछे लाइन में खड़े हो गए।
"आपके यहाँ तो काफ़ी variety है।" Robert ने चुटकी ली।
"अभी तो सिर्फ हवाई गँवार देखे हैं। सड़क अभी बाक़ी है मेरे दोस्त।"
हवाईअड्डे से बाहर निकलते ही शोर सुन के Robert बोला "तुम्हारे यहाँ horn कितना बजता है। हमारे Africa में तो अगर किसी ने हल्का सा भी horn दबा दिया तो सारी पब्लिक उसको घूरने लगती है कि कोई बहुत बड़ा मसला है क्या ? Horn बजाने की ज़रूरत क्यों पड़ गई। "
"अरे यार! यहाँ तो सुसरे गाड़ी खरीद लेते हैं पर चलाने की तमीज़ नहीं है। जहाँ केवल break दबाने से काम चल सकता हो वहां horn दबा देते हैं, इससे break कम घिसेंगे। जैसे संगीतकार हारमोनियम पर विभिन्न सुर बजा लेता है वैसे ही ये कार-पे-सवार गँवार horn पे भाँति भाँति की गालियां बजा लेते हैं।"
"आप इनकी गालियां समझ सकते हैं ?" Robert ने अपना संशय प्रगट किया।
"अगर आप उत्तर प्रदेश में रहे हों, जहां देश की बेहतरीन गालियों का उद्गम है, तो आप को horn से निकलने वाली एक एक गाली समझ में आएगी। डेढ़ सेकंड का हॉर्न बजे तो समझ लो कि वह चिड़चिड़ाहट का नतीजा है और 17 सेकंड हॉर्न का मतलब है कि तुरंत हट जाओ वरना तुम्हारी तो....बाकी तुम अंदाज़ा लगा लो। (इसको विस्तार से समझाना Ooopz के लिए भी संभव नहीं है) और अगर हॉर्न दबा कर दबा ही रह जाए तो इसका मतलब है कि बजाने वाले के सर पर ख़ून सवार है…दफ़ा 307…attempt to murder. वह गाड़ी आपकी लाश के ऊपर से निकाली जा सकने का पूरा इरादा है।" हमारी टैक्सी लाल बत्ती पर रुक गई।
मैंने अपनी बात जारी रखी "तुमको जान के ताज्जुब होगा कि 17 सेकंड और दफ़ा 307 वाले अधिकतर वे लोग हैं जो सबसे अधिक पढ़े-लिखे हैं या ऊँचे ओहदे पर काम करते हैं। उनकी गाड़ी से 100-200 मीटर दूर भी अगर कोई उनको दिख गया तो वह उनकी शान में बट्टा है और उस कमीने को तो horn बजा बजा के ये धकेल के ही मानेंगे। इनकी पढ़ाई या ओहदे के level का गंवारपन से सीधा रिश्ता है। जो जितना ज़्यादा लंबा horn बजाए उससे आप समझ लो कि वह समाज का उतना ही बड़ा पढ़ा-लिखा और सीनियर गँवार है। इन लोगों की ego तो उन कंपनी के मालिकों से भी ज़्यादा होती है जहाँ ये नौकरी करते हैं।"
हरी बत्ती होते ही पीछे वाली कुछ गाड़ियों ने पें पें शुरू दी।
"देखा Robert ? हमारी गाड़ी के आगे 7 गाड़ियां हैं। सिगनल अभी अभी हरा हुआ है। मगर हमारे पीछे वाले मिस्टर गँवार ने तुरंत हॉर्न बजा के अपना परिचय दे दिया। अगर थोड़ा धैर्य रखते तो पब्लिक को पता भी न चलता कि ये गँवार हैं। यह गँवार चाहते हैं कि सिग्नल हरा होते ही इनके आगे वाली गाड़ियां उड़न-छू हो जाएं और आगे कई मील तक इनका रास्ता साफ़ रहे।
ऐसे ही एक गँवार साहेब हमारी कॉलोनी में रहते हैं…किसी अच्छी बड़ी कंपनी के CEO हैं। देर रात में घर लौटते हैं। उनकी गाड़ी में reverse gear में musical horn लगा है। देर रात में आ कर गाडी reverse gear में डाल के, parking में घुसने के बाद खड़े हो जायेंगे और 15-20 मिनट तक फ़ोन पर बात करते रहेंगे। उतनी देर उनका म्यूजिकल हॉर्न रात के सन्नाटे को चीर कर आपकी नींद की ऐसी की तैसी करता रहता है। ऐसे लोगों को अगर टोक दो तो न तो वे सॉरी बोलेंगे और न ही Ooopz. उल्टा आप पर चढ़ाई कर देंगे।
एक रात जब झेला नहीं गया तो मैं उनके पास गया और गाड़ी बंद करने का आग्रह किया। भाई चढ़ लिए मुझ पर, "पूरी कॉलोनी में बस आपकी ही नींद हराम हो रही है ?"
"नहीं ऐसी बात नहीं है। हम लोगों में रात में उल्लू का बोलना बहुत अशुभ माना जाता है। कॉलोनी की सोसाइटी ने रात में उल्लुओं को चुप कराने की ज़िम्मेवारी मुझ को दी हुई है।" मिस्टर गँवार उस कटाक्ष को समझे या नहीं…पता नहीं… लेकिन मैंने मन ही मन लक्ष्मी वाहन से क्षमा मांग ली क्योंकि मैंने उल्लू की तुलना एक तुच्छ गँवार से कर दी थी।
कई गँवार तो ऐसे भी हैं जो गड्ढा या spead-breaker देखते ही break लगाने के बजाए horn बजा देते हैं। अरे भाई! वह गड्ढा है। गधा या भैंस नहीं जो आपकी गुहार सुन कर सरक जायेगा।
मैंने Robert से पूछा "तुमको ubiquitous या omnipresent की हिंदी आती है ?"
"हाँ! सर्वव्यापी… like God."
"बिल्कुल सही। हमारे यहाँ… like गँवार।
हमारी बिल्डिंग में कुछ परिवार के लोग सवेरे सवेरे लिफ्ट रोक कर खड़े हो जाते हैं। बाकी जनता नीचे इंतज़ार कर रही है पर भैय्या को कोई चिंता नहीं 10-12 मिनट के लिए लिफ्ट रोकना उनके परिवारों की अदा है। दादा जी और दादी को मंदिर जाना है, पप्पू और बंटी को स्कूल जाना है, मम्मी को बाज़ार जाना है और सब पापा की गाड़ी में एक साथ जायेंगे। उसके लिए यह ज़रूरी है कि सब एक साथ lift में नीचे आएं।"
Lift नीचे आते ही मैंने उनको बधाई दी "मुबारक हो ! आपने लिफ्ट time से पकड़ ली। अगर 8.33 की लिफ्ट छूट गई होती तो आज दोबारा नहीं मिलती।" बाकी मैंने मन ही मन कहा 'गँवार कहीं के।'
ऐसे ही कुछ परिवारों की आदत है कि balcony में रखे अपने पौधों में पानी देंगे तो पाइप से धार मारेंगे और आधा पानी नीचे के flats की बालकनी में टपकायेंगे। कई बार मना किया पर मानते ही नहीं। Society से notice भी आ गया पर वो लोग तो अपने आप को Super-man समझते हैं।"
एक दिन मैंने टोक दिया 'Sir ji ! अपना prostate और sugar टेस्ट करा लें। आपकी धार दिन में कई बार नीचे तक आती है।'
Super-man को शायद यह बात खल गई। अगले दिन सवेरे मेरी कार पर कील से 'idiot' लिख दिया गया था। Super-man नहीं....सुपर-गँवार !!!
अब इन modern गँवारों को कैसे समझाएं कि पतलून के ऊपर चड्डी पहनने से हर कोई Super-man नहीं बन जाता। तुम कितना भी tie लगा कर घूमो जब तक तुम चड्डी के ऊपर पतलून भी नहीं चढ़ा लेते, तुम गँवार के गँवार ही रहोगे।
समझ जाओ तो ठीक वरना गँवार के गँवार.... Ooopz !!!
Ooopz
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