सुबह बहुत खुशनुमा थी. WhatsApp ग्रुप पर पहला
सन्देश था कि हर ग़रीब के खाते में रु.15 लाख आ चुके हैं. चलो...मोदी जी ने अपना
वादा पूरा किया. मैं बहुत खुश हुआ कि कितने ग़रीबों का भला हो जाएगा.
पूरा समाचार जानने के लिए समाचार पत्र ढूँढा तो वह नदारद था. बिना उसके हमारी
छोटी और बड़ी आंत हरकत में ही नहीं आतीं. गुस्से में पेपर वाले को फ़ोन लगाया – ‘क्या यार ! आठ बज गए और पेपर नहीं डाला ?’
‘साहब ! कोई लड़का काम पे
नहीं आया. सबके खाते में 15 लाख आ गए हैं और वे काम छोड़ कर गए. मैं ख़ुद ही पेपर
डाल रहा हूँ. 3-4 घंटों में आपका नम्बर आ जाएगा.’
मैंने बेग़म को आवाज़ दी ‘मैडम ! चाय मिल
जाए तो शायद कुछ प्रेशर बन जाए.’
‘आज चाय नहीं मिलेगी. दूध
नहीं आया. पड़ोसन का फ़ोन आया था. दूधवाले के खाते में 15 लाख आ गए हैं. वह कह गया
है दूध का धंधा बंद. कौन 4 बजे उठ कर भैसों को सानी दे और दुहे ?’ बेग़म का डायलॉग चालू रहा ‘बाई ने भी अपने नए एंड्राइड फ़ोन से WhatsApp मेसेज किया है. उसके खाते में भी 15 लाख आ गए हैं. आज से काम पे नहीं आएगी.
तुम आ कर बर्तन धोने में मेरा हाथ बंटा दो. झाड़ू मैं लगा दूंगी तुम पोछा लगा देना.’
मैं बड़बड़ाया ‘तुमको कोई अमीर
कामवाली नहीं मिली थी रखने को ? कम से कम उसको
तो 15 लाख नहीं मिलते.’
‘बड़बड़ाओ मत...’ बेग़म गूंजी ‘तुम से कुछ
नहीं होगा. मुझे लगता है महाराजिन के भी खाते में 15 लाख आ गए हैं. अभी तक तो आई
नहीं है. खाना मुझे ही बनाना होगा. तुम कम से कम टमाटर तो ला सकते हो बाज़ार से.’
‘यह काम आसान है’ मैंने सोचा और झोला लपक के बाहर सटक लिया. हमारी कॉलोनी के
बाहर ही सड़क किनारे बीसियों सब्ज़ी वाले बैठते हैं.
कॉलोनी के बाहर तो सन्नाटा था. एक भी सब्ज़ी वाला या ठेले वाला नहीं. सड़क बहुत
चौड़ी दिख रही थी. पता लगा उन सब के खातों में भी 15 लाख आ चुके थे और अब वे सड़क
किनारे सब्ज़ी की टोकरी का धंधा wind up कर चुके थे. अब वह उनकी शान के खिलाफ़ था क्योंकि वे सब
लखपति थे. कोई चारा न था. 3 किलोमीटर दूर, मंडी से ही टमाटर लाने पड़ेंगे.
गाड़ी निकालने लगा तो देखा आज बिरजू ने गाड़ी भी नहीं धोई है. मिट्टी और कीचड़ से
अटी पड़ी है. सोचा ऑटो पकड़ लूं. शायद भूल गया था कि ऑटो वाले भी ग़रीब थे. दूर दूर
तक कोई ऑटो नहीं था. सब की 15 लाख की सम्मिलित डकार मेरे कानों में गूंजने लगी.
खैर, गाड़ी निकाल के मंडी
पंहुचा. नज़ारा कुछ और ही था. लगा पूरा हिंदुस्तान वहीँ टूट पड़ा है. ज़ाहिर था...हर
मोहल्ले की सड़कें बहुत चौड़ी हो चुकी होंगी क्योंकि सड़क से सारे ठेले और खोंचे ग़ायब हैं. बहुत ढूँढा तो एक गाले पर एक टमाटर की
ढेरी दिख गई. मैंने कहा ‘यार, 1 किलो टमाटर दे दो.’
वह बड़ी रुखाई से बोला ‘3 किलो की ढेरी
है. रु 1,050 लग चुके हैं इसके. आप
कितना दोगे ?’
मैं गुर्राया ‘अरे भाव बताओ 1
किलो का. बोली मत लगवाओ.’
‘बाबूजी ! पूरी मंडी में बस
यही टमाटर बचा है. आज खेत से कोई सब्ज़ी नहीं आई है. साढ़े तीन सौ रु किलो में मिल
रहा है. भर लो. कल से तो शायद ये भी न मिले. हर ग़रीब किसान के घर में 4-5 आधार
कार्ड हैं और हर कार्ड पर 15 पेटी मिले हैं. जब तक ये साले ठेके पर लुटा नहीं
देंगे, कोई खेत में नहीं घुसेगा.’
भीड़ में से एक आवाज़ आई ‘ये लो 1,200 और बांध दो.’ मैं सोचता ही रह गया और यह बिरजू का बच्चा 400 रु किलो में टमाटर उठा ले गया.
ग़रीब बिरजू...मेरी गाड़ी धोने वाला.
सामने से मिश्रा जी आते हुए दिखे. ग़रीब से भी ज़्यादा ग़रीब दिख रहे थे. पास आए
तो उनके कपड़ों से आती हुई फिनायल की गंध उनकी सवेरे से अब तक की दास्ताँ कह गई.
शायद पोछा लगाने का उनका यह पहला तजुर्बा था.
‘टमाटर नहीं मिले’...पता नहीं कि वह सवाल कर रहे थे या यह उनकी खोज का अंतिम नतीजा
था. ‘2,000 रु ले कर सब्ज़ी लेने आया था. इतने में तो दो लौकियाँ ही
मिलीं हैं. बिना टमाटर के यह ही खा लेंगे.’
‘क्या मिश्रा जी. आप को तो
ख़ुश होना चाहिए. चार साल से तो आपको मोदी जी से यही शिकायत थी कि वादा करके वह
मुकर गए. अब आ गए न हर खाते में 15 लाख रु.’
डबडबाई आँखों और रुंधे गले से बोले ‘आज से पोछा लगाने की ड्यूटी मेरी. बाई काम छोड़ गई. और जाते जाते मेरी बीबी से
बोली कोई अच्छी लड़की दिखे तो मेरे घर भेज देना मैडम. एक बाई रखनी है मुझे.’
फिर थोड़ा संयत हो कर बोले ‘ग़लती हो गई
भैय्या...बहुत बड़ी ग़लती. इतने दूर की तो सोची भी न थी. भड़काऊ लोगों के बहकावे में
आ गए. चार साल से जो गालियां निकल रही थीं, पिछले चार घंटों में ही मेरे अंदर बुद्धि और गुरुदत्त की रूह – दोनों आ चुकी हैं
यह गरीबों, किसानों, मजूरों की दुनिया.
बैठे बैठे ही लाखों पाने वालों की दुनिया.
ये बुद्धि से पैदल भड़काऊओं की दुनिया.
फ्री में गर लाखों मिल जाए तो क्या हो ?
अब देख लो – फ्री में लाखों मिल जाए तो ये हो. हर जेब का साइज़ देख कर भाव
बढ़ेंगे. उदाहरण की भाषा उन्हीं लोगों के सामने बोलो जो उदाहरण समझें वरना वे लोग जिंदगी
भर भैंस के आगे बीन बजायेंगे और शिकायत करेंगे कि कुछ हुआ ही नहीं.’
(यह भविष्यवाणी अर्थशास्त्र से प्रेरित है. कृपया राजनीति
को दूर रख कर पढ़ें. जल्दी समझ आएगी)
Fact 👍👍👍👍👍
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