बन गए भाई...हम नाना बन गए. भगवान भला करे बच्चों का जिन्होंने हमें नाना बनाया वरना पैदा होने से अब तक, समाज हमें उल्लू ही बनाता आ रहा था.
पैदा होते ही न जाने कैसे कैसे घिनौने स्वाद वाली दवाईयाँ हमारे मुँह में ‘लू लू लू’ की आवाज़ कर के डाल दी जाती थीं और हम समझते रह जाते थे कि ‘लू लू’ कोई बहुत स्वादिष्ट व्यंजन होगा. मगर वह ‘उल्लू’ का ही संक्षिप्तिकरण था.
स्कूल में घुसे तो टीचर यह कह के उल्लू बनाती रहीं कि ‘बेटा ! मम्मी बाहर ही खड़ी हैं. अभी आती हैं.’ और हम क्लास के दरवाज़े की ओर टकटकी लगाए मम्मी का इंतज़ार करते रह जाते. हम कई class पार कर गए पर मम्मी कभी छुट्टी से पहले नहीं आईं. इस बीच टीचर ने 5-6 नर्सरी rhymes और 2-3 पहाड़े घोट घोट कर हमारे गले के नीचे उतार दिए. हम एक बार फिर उल्लू बन गए.
थोड़ा और बड़े हुए तो पापा ने, हमें लगभग घसीट के दुकान से बाहर ले जाते हुए, कहा ‘बेटा ! यह खिलौना कल दिलाएंगे.’ हम भी किसी ग़रीब मतदाता की तरह उनकी बातों में आ गए और ग़रीबी हटने के लिए अगले चुनाव का इंतज़ार करते रहे. विश्वास मानिये हम सीनियर सिटिज़न हो गए मगर पापा का वह ‘कल’ आज तक नहीं आया. हम मुतवातिर उल्लू बनते रहे और खिलौनों और कल के इंतजार में बुड्ढे हो गए.
और फिर चली वार्षिक उल्लू बनाने की प्रक्रिया ‘बेटा ! दसवीं में अच्छे नम्बर नहीं आए तो जिंदगी बर्बाद.’ फिर बारहवीं और ग्रेजुएशन में भी इसी प्रकार की धमकियाँ हमें हमारे उल्लू होने का समय समय पर एहसास दिलाती रहीं.
नौकरी लगी तो बॉस ने बोला ‘मेहनत से काम नहीं करोगे तो प्रमोशन भूल जाओ.’ हम देर रात तक ऑफिस में बैठ बैठ कर अपने उल्लू होने का प्रमाण देते रहे और चिल्लरनुमा प्रमोशन ले ले कर रिटायर भी हो गए. बॉस हमारी मेहनत के बल पर बहुत ऊपर पहुंचे और रिटायरमेंट के बाद एक्सटेंशन भी पा गए.
कमाने लगे तो सरकार ने कहा ‘सही टैक्स सही वक्त से भरो और आराम की जिंदगी जियो’. हम वक्त से टैक्स भरते रहे और आराम से ख़ुद ही विजय सुपर से बच्चों को स्कूल छोड़ते रहे. जो बेचारे टैक्स की चोरी करते थे वे बड़ी तकलीफ़ में अपने ड्राईवर के साथ बच्चों को मर्सडीज़ में भेजते थे. अब पता चला कि उल्लू हम थे जो हम उन लोगों का भी टैक्स भरते रहे.
मगर अब ये नहीं चलेगा. अब हम उल्लू नहीं – नाना हैं.
कब बच्चे के साथ वक्त गुज़र जाता है...पता ही नहीं चलता. उसको तो बस दो ही काम हैं...खाओ और हगो. किसी नेता से कम नहीं है - पॉवर में है तो खायेगा...पॉवर छिन गई तो पूरे देश में गंद फैलाएगा. बच्चे के रोने से अंदाज़ ही नहीं लगता कि भूखा है या तिकोनी गीली कर दी है या गोदी में आना चाहता है. बिलकुल किसी सधे हुए नेता के माफ़िक – भाषण से अंदाज़ ही नहीं लगता कि हमारे फ़ायदे की बात कर रहा है या अपने फ़ायदे की...देश को बचाना चाहता है या उसे बेच खाना चाहता है. पहले हम हर चुनाव में उनकी टोपी बदलते रहे और उल्लू बनते रहे. अब हम बच्चों की तिकोनियाँ बदल रहे हैं क्योंकि हम नाना हैं और अब हम ज्ञानी हैं. अब हम वही तिकोनी और टोपी बदलते हैं जो गन्दी होती हैं. इसलिए सभी राजनीतिक पार्टियों से अनुरोध है कि आम चुनाव में जीतने के लिए कृपया अपनी तिकोनी...मतलब टोपी...पर फोकस करें और उसे बेदाग़ रखें. दूसरे की टोपी पर कीचड़ उछाल कर हमें न बताएं कि आपकी तिकोनी साफ़ है और उसकी गन्दी. यह निर्णय देश के अनेक ज्ञानी नानाओं पर छोड़ दें.
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Thank you for the encouragement.