कभी आपने
सोचा है कि किसी से मिलते ही या अक्सर फ़ोन पर बात करते करते बीच बीच
में एक सवाल
किया जाता है "क्या हाल है ?"
और आप यंत्रवत जवाब देते हैं "ठीक है।"
वास्तव में न तो पूछने वाले को रूचि है आपका हाल जानने में और न
ही आप उस सवाल को बहुत संजीदगी से लेते हैं। उन्होंने मशीन की तरह पूछा…यह जानते हुए कि जवाब क्या आएगा…और आप recorded
message की तरह बोल देते हैं "ठीक हैं।"
एक बात और - यह सवाल ज़्यादातर तब पूछा जाता है जब बात करने के लिए
कोई मुद्दा नहीं मिल
रहा।
बात करते करते जब भी मसाला ख़त्म हो जाता है तो दो में से एक बोलता है
"और क्या हाल है ?" और सामने
वाला कहता है "ठीक
है।" थोड़ी देर बाद तो यह और भी संक्षेप में हो जाता है और सामने वाला
सिर्फ "और…?" कह कर काम चलाता है और आप भी उसका प्रश्न भांप के तपाक से कह देते
हैं "और सब ठीक है।"
असल में दोनों इस इंतज़ार में होते हैं की कब कोई एक बोले
कि 'अच्छा
चलते हैं…फिर
मिलेंगे।' खुद नहीं
बोलेंगे …बस इस
इंतज़ार में 'और… और' करते रहेंगे कि दूसरा यह
बात कहे।
मगर एक प्रजाति बड़ी अजीब पाई जाती है। जैसे ही आप पूछते हैं
"क्या हाल है ?", वह चालू
हो जाते हैं और आपके सवाल को काफ़ी गंभीरता से ले लेते हैं मानो आप उनकी सेहत के बारे में जानने के बहुत इच्छुक हैं - "sinus (साइनस)
तो कण्ट्रोल में है लेकिन vertigo की बीमारी शुरू हो
गई है। आप जानते हैं कि इसमें आदमी संतुलन खो देता है। चक्कर आते हैं।" और
फिर वह बीमारी के बारे में पूरा ज्ञान देते हैं "हमारे संतुलन को कान के अंदर
हड्डी और कोमल tissue का एक
जाल नियंत्रित करता है।
जो तरल इनमें
भरा होता है वह दिमाग़ को संकेत देता है की कब हमारा सिर दायें-बाएं या
ऊपर-नीचे....", और वह अपनी
बीमारी का जीव-वैज्ञानिक परिचय देने लगे।
उनकी आवाज़ धीरे धीरे क्षीण होने लगी या शायद मेरे कान धीरे धीरे बंद
होने लगे। मुझे सिर्फ़ उनके ओंठ हिलते हुए दिखाई दे रहे थे। बिना कोई vertigo समस्या
के मुझे चक्कर आने लगे थे।
मेरे अंदर से कोई मुझे धिक्कार रहा था 'मूर्ख ! और पूछ इस ईडियट का हाल।
अब क्यों पछता रहा है। पूरा डॉक्टर बना के छोड़ेगा यह तुझे। हे धरती तू फट जा ! एम्बुलेंस तू प्रगट होजा और इस कार्टून को बटोर ले जा।'
मैंने दो-तीन बार मुंह फाड़ के गहरी सांस ली (इसे उबासी कहते हैं और बोर होने की दशा में ऐसी मुद्रा बनाई जाती है.) विषय बदलने के लिए उनकी बात काटते हुए मैंने कहा
"अपना ध्यान रखा करिए। और…बेटा
क्या कर रहा है आज कल ?"
"वह
ग़ाज़ियाबाद में है। Vertigo की समस्या के बाद
मैंने उसे कुछ दिन अपने पास बुला लिया। आप तो जानते हैं, vertigo में
अकेले रहना...." और फिर वह वापस vertigo के बारे में बताने लगे।
इस तरह के लोगों का शौक़ होता है …किसी को भी पकड़ लेंगे और अपना पूरा मेडिकल बुलेटिन सामने
वाले पर उड़ेलने में इतना सुख पाते हैं जैसे घंटों बाद किसी को तक़दीर से सुलभ शौचालय मिल गया हो.
कुछ लोग अपनी
ज़िन्दगी की सफलताएँ और उपलब्धियां सुनाते
हैं पर इनकी ज़िन्दगी में कोई सुनाने लायक उपलब्धियां नहीं
होती हैं तो जो उपलब्ध है उसी बीमारी का राग अलाप के लोगों का ध्यान आकर्षित करते हैं और उनकी
सहानुभूति इकट्ठी करना चाहते हैं। किसी भी पार्टी वगैरह में 4-6 लोगों को खींच लेंगे और
सुनाने लगेंगे अपनी भाँति भाँति की बिमारियों का हाल। जैसे कोई Olympics का विजेता अपने स्वर्ण, रजत और कांस्य पदक दिखा रहा हो।
कई महीनों बाद, एक दिन
एक शादी में मुझे वह दूर से
ही दिखाई दे गए। उन्होंने दूर से हाथ हिलाया पर मैंने जैसे अनदेखा कर दिया और भाग
के सलाद के काउंटर के पीछे जा छिपा। फिर ध्यान आया, यह तो सलाद के अलावा कुछ खाता नहीं होगा…ज़रूर इस काउंटर पर आएगा और
मुझे पकड़ लेगा। मैं वहां से कट लिया और पकौड़ी-समोसे के काउंटर के पीछे छुप कर, भीड़ में उनको GPS के माफ़िक दूर से ही उनकी टोह लेने
लगा। अचानक किसी ने मेरे कंधे पर हाथ रखा "आप यहाँ खड़े हो और मैं कब से आपको
ढूंढ रहा हूँ।"
मेरी धप्पी हो गई थी - 'धत्त्
तेरे की ! यहाँ कैसे ढूंढ लिया इसने मुझे ?'
"अरे आप
यहाँ पकौड़ी समोसे के काउंटर पर क्या
कर रहे हैं ? आपकी
सेहत के लिए तो यह बिल्कुल ठीक नहीं है।" मैंने जानबूझ कर उनका हाल नहीं
पूछा।
"अरे
बताता हूँ। बड़ा ही रोचक किस्सा है। कुछ महीने पहले मेरी तबियत कुछ ज़्यादा ख़राब हुई, डॉक्टर को दिखाया तो उसने stent डलवाने
के लिए कहा। बस, उसको
डलवाने के बाद डॉक्टर ने सब कुछ खाने की छूट दे दी.…क्या समोसे और क्या
पकोड़े…सबकी इजाज़त है। अब
तो मैं सलाद की तरफ़ जाता भी नहीं।"
वह चुप नहीं हुए। आदतानुसार चालू हो गए "आपको मालूम है stent एक ट्यूब
होता है जिसका पतली और कमज़ोर धमनियों के इलाज में प्रयोग होता है। धमनी या Arteries तो आप
जानते हैं ? यह विधि PCI या coronary angioplasty कहलाती है। यह तकनीक…"
उनकी आवाज़ धीरे धीरे क्षीण होने लगी या शायद मेरे कान धीरे धीरे बंद
होने लगे। मुझे सिर्फ़ उनके ओंठ हिलते हुए दिख रहे थे। मेरी साँसे भारी होने लगी और
धड़कन बढ़ने लगीं। शायद मुझे भी stent
की ज़रूरत महसूस होने लगी थी। मैंने फिर एक बार मन ही मन धरती फटने और एम्बुलेंस प्रगट होने की गुहार करी।
इसी नस्ल के एक और
साहब मुझे टकरा गए बाज़ार में। इस
तरह के लोगों का स्टाइल फर्क होता है। ग़लती से या आदतन मैंने कह दिया 'How are you ?' और
भैय्या को तो जैसे शिकार मिल गया। अपनी छतरी बंद कर के बोले
"आओ थोड़ा साये में खड़े होते हैं। You see, मैं अपने आप को कितना फ़िट रखता हूँ। BP, Sugar, Cholesterol वगैरह सब
अपनी जगह एकदम टिंच हैं। रोज़ 5 किलो मीटर पैदल चलता हूँ। और नियमित योगा
करता हूँ। आज भी पांच मंज़िल तक बिना लिफ्ट के चढ़ जाता हूँ।"
अगले 7 मिनट तक
उन्होंने वहीँ, सड़क के
किनारे 'How are you' पर अच्छा
ख़ासा निबंध सुना दिया और
मुझे मेरी ग़लती का एहसास भी करा
दिया। और फिर दौर शुरू हुआ नसीहत का "तुम भी कुछ किया करो न, इतना पेट बाहर आ रहा है। यह
अच्छी बात नहीं है सेहत के लिए। बाबा रामदेव की CD खरीद लो और उससे रोज़ाना योगा का अभ्यास करो।
खाने में इस बात का ध्यान रखो कि लौकी, करेला...."
और फिर उन्होंने क्या बोला मुझे कुछ याद नहीं लेकिन उनकी आवाज़ धीरे
धीरे क्षीण होने लगी थी या शायद
मेरे कान धीरे धीरे बंद होने लगे थे। मुझे सिर्फ़ उनके ओंठ हिलते हुए दिख रहे थे जो
अगले 7 मिनट तक
चलते रहे थे। मेरी आँखों के चारों तरफ़ दिन में तारों की जगह लौकी, करेला, तुरई आदि घूम रहे थे. बमुश्किल तमाम मैंने उनसे पीछा छुड़ाया।
और तीसरी नस्ल बहुत ही ख़ास है। ये हैं तो पहले
वाले की तरह हर समय बीमार मगर इनका हाल सुनाने का तरीका अलग होता है.… क़ातिलाना. एक डिनर पार्टी में टकरा गए
वह हमसे और अचानक मेरे मुँह से (ग़लती से) निकला "अरे वाह ! बहुत दिनों बाद
मिले। क्या हाल हैं ?"
बस!!! चालू हो गए वह "अरे क्या बताएं। कुछ ठीक नहीं है। सीने
में इतना बलग़म जमा रहता है कि रात भर
खाँसते ही गुज़रती है। आयुर्वेदिक दवाई शुरू करी…डॉक्टर कहता है जब तक बलग़म हरे रंग का है तब तक इन्फेक्शन ख़त्म
नहीं हुआ। थोड़ा
फ़ायदा हुआ पर अभी भी हरापन ख़त्म नहीं हुआ। बिलकुल घुटे हुए सरसों के साग के रंग का
है।"
अब आप ही सोचिये,
अभी अभी प्लेट में अगर
आपने सरसों का साग डाला हो
तो आप पर क्या गुज़रेगी ? मगर उनको
कोई तरस नहीं आया। वह मेरे बेवक़ूफ़ी के सवाल का जवाब पूरी संजीदगी से देते रहे।
"अच्छा
खासा पेट साफ़
होता था पर उनकी दवाई खाने के बाद से बिल्कुल कढ़ी के रंग का पतला हो रहा है।"
मुझे इतनी ज़ोर की खुंदक आई कि मैंने अपनी कढ़ी और साग की प्लेट नीचे रख
दी और गुस्से में पूछा "आप को तंदूरी मुर्गे की तरह का तो कुछ
बाहर नहीं
निकल रहा न ?" और यह कह
कर में non-veg की मेज़ की ओर
लपक लिया। वह अपना बाक़ी का हाल सुनाने
के लिए दूसरा शिकार ढूंढने लगे।
यह बात दूसरी है कि उसके बाद मुझ से कुछ भी खाया न गया मगर मैने यह
बात गाँठ बाँध ली कि आगे से किसी से भी उसका हाल नहीं पूछना है।
'कैसे हो ? क्या हाल है ? How are you ?' वगैरह पर पूर्ण प्रतिबन्ध लगा दिया
है।
आप भी सतर्क रहना।
Ha ha ha.
ReplyDeletemurli: hello anuragji kya haal ho?
Anurag: ab thak teek tha, aage poochega tho mera dimaag kharaab hoga... Us se pahale phone ragh lo.
murli: halo..... Halo... Kyaa bola.. Kuch suntha nahi... Ye BSNL connection be kamaal ka hai.. (disconnected)
Enjoyed the post
Ha ha ha very well written! You should take up this craft seriously.
ReplyDeleteEnjoyed...
Alka
Good one, keep it going..another variant is "aur kya chal raha hai," and lo behold, you get downloaded with all the problems, real or imaginary, of the person whom you innocuously asked this question.
ReplyDeleteगज़ब का लेख़। ।। मज़ा आ गया पढ कर ।।
ReplyDeleteGood one
ReplyDeleteNicely written. Keep it up.
ReplyDeleteAnil Kapur