"क्या गुप्ता जी ! आपकी शक्ल से तो लगा कि आप एक हफ्ते से constipation से परेशान हैं। यह तो छोटी सी बात है। भूल गए होंगे बेचारे मिश्रा जी तैयारी की उथन-पुथन में।"
"अरे ! हम को कैसे भूल सकते हैं ?"
"कई बार होता है। अब आप कई दिनों से शायद उनसे मिले न हों तो ध्यान से उतर गया होगा।"
"कैसी बात कर रहे हैं आप। रोज़ good morning करता हूँ मैं उन्हें।"
"ओह ! फिर तो भूलने के chances कम हैं जब आप रोज़ मिलते हैं उनसे।"
"नहीं मिले नहीं पर daily WhatsApp पर good morning भेजता हूँ।"
"वह तो आप broadcast करते होंगे group पर ?"
"हाँ "
"कितने members हैं ग्रुप पर ?"
"करीब सत्तर-पचहत्तर तो होंगे ही।"
"बहुत खूब। तो 75 लोगों को आप WhatsApp पर daily good morning करते हैं और आपका मतलब है कि उन 75 घरों में हर पार्टी में आपको बुलाए जाने का हक़ तो आपका बनता ही है।"
"बिल्कुल"
"औसतन चार लोगों का परिवार मान कर चलें तो प्रत्येक घर में हर साल चार birthday और एक marriage anniversary तो हो ही गई। यानि 300 जन्मदिन और 75 marriage anniversary.... कुल मिला कर 375 पार्टियाँ, फिर तो एक साल तक आपके घर में dinner बनने की ज़रूरत ही नहीं और तब तक दूसरा साल शुरू हो जाएगा। आपका फॉर्मूला पसंद आया हमें।"
"आप गणित न समझाएं हमें। Feelings देखिये हमारी। चोट लगी है यहाँ (सीने को ठोकते हुए बोले)… यहाँ दिल पर। उनकी Facebook की हर फोटो को मैं पहला आदमी होता हूँ जो 'Like' करता है....चाहें फोटो में बच्चे की नाक ही क्यों न बह रही हो।"
"ओह ! जब बहती नाक को भी आपने सलाम भेजा है तब तो बहुत ग़लत किया उन्होंने।"
"और नहीं तो क्या। मैं सोचता था कि वह मुझे बहुत करीब का मानते हैं।"
"अच्छा ? ऐसा है ? तो आप भी मानते हैं उनको अपने करीब का ?"
"जी हाँ !"
"भई वाह ! ऐसा लगता तो नहीं है। वह पार्टी में बुलाएँ तो वह करीबी .... नहीं बुलाएं तो आप ठाकुर और वह गब्बर ? यह कैसा करीबीपन है ? मैं तो तब मानता कि आप उनको करीब मानते हैं जब वह बुलाएँ या न बुलाएँ… आपका प्रेम उनके लिए बना रहे। पार्टी में न बुलाया जाना.... यह तो कोई मापदण्ड नहीं है प्रेम का।"
"आप को समझाना बेकार है। आप के साथ ऐसा हुआ होता तो पता चलता।"
"मेरे साथ भी होता है और बहुतों के साथ होता है। मैं तो इतनी छोटी छोटी बातों पर ध्यान भी नहीं देता। उनकी मर्ज़ी, जिसे बुलाएँ या न बुलाएँ। हमारे रिश्ते में कोई ख़लल नहीं पड़ता। 'बुलाना या न बुलाना' - यह एक अधिकार होता है, मगर 'बुलाया जाना' - यह कोई अधिकार नहीं होता। अगर मैं उन्हें बहुत करीबी मानता हूँ तो मैं ऐसे में बाजार से कुछ पकवान मंगा कर अपने घर में celebrate कर लेता हूँ उनके जन्मदिन या anniversary या जो भी occasion है, उसकी बधाई भी दे देता हूँ। उनकी ख़ुशी हमारी ख़ुशी है।"
गुप्ता जी ने मुझे बहुत ही झल्लायी नज़र से देखा मानो किसी बच्चे को दो का पहाड़ा रटाते रटाते थक गए हों।
मैंने अपनी बात जारी रखी "क्या गुप्ता जी। चंद दही बरे, दो गुलाब जामुन और एक Pepsi न मिलने पर रिश्ते पर बादल छा गए ?"
गुप्ता जी ने मुझे ऐसे घूरा जैसे मैं उनकी kidney में पड़ा stone हूँ जिसे वह निकाल फेंकने के लिए बेताब हैं।
"गुप्ता जी ! किसी भी पार्टी में सबसे मुश्किल दो ही बातें होती हैं - एक तो 'कितने बुलाएँ' और दूसरी 'किसको न बुलाएँ'। दूसरी सूची बनाने में बड़ी मेहनत भी लगती है और नाम काटते समय बहुत तकलीफ़ भी होती है।"
"अरे आप भी क्या मिश्रा जी की side लेने में लगे हुए हैं। आपको भी तो नहीं बुलाया उन्होंने।"
मुझे लगा क्या solid बकरा है यह....hawkins की इतनी सीटियाँ बजा दीं फिर भी गलने का नाम ही नहीं ले रहा। अब समझ में आया कि भैंस के आगे बीन और कुत्तों के आगे बसंती का नाच क्यों बेकार होते हैं। बीरू वाकई दूरदर्शी था।
"ठीक है गुप्ता जी! एक काम करते हैं। कुछ ही महीनों में आप पिंकी की शादी करने जा रहे हैं। क्यों न मेहमानों की list बना लें। मैं आपको कुछ tips दे देता हूँ।"
और फिर मैंने उनको तरीक़ा बताया कि मेहमानों की list कैसे बनाई जाए - "अपने father side के सारे रिश्तेदार, फिर आपकी mother side के, फिर आपके ससुराल वाले, उसके बाद अपनी कॉलोनी वाले, फिर आपके दफ़्तर के सारे संगी-साथी, फिर आपके बचपन के दोस्त। अरे हाँ ! अपने बच्चों और भाभी जी से भी उनकी list लेना मत भूलिएगा। उसके बाद आपके WhatsApp के सारे groups, फिर Face Book के सारे groups, फिर आपके Yahoo mail और Gmail पर जितने groups हैं। अपनी लोकल ट्रेन वाला ग्रुप मत भूल जाइएगा। हो सकता है आपके भाई, बहन या parents भी अपने कुछ दोस्तों को बुलाना चाहें। उनके नाम भी अपनी list में जोड़ लीजिएगा। आखिर में एक list उन परिवारों की बना लीजिए जिनको आप क़रीबी मानते हों या नहीं लेकिन उन्होंने आपको कभी न कभी निमंत्रण दिया हो। किसी को भी छोड़िएगा नहीं क्योंकि ये सब करीबी हैं और निमंत्रण की अपेक्षा रखते होंगे। एक बार list बन गई तो उसको 3 या 4 की संख्या से गुणा कर लीजिए तो आपको कुल आने वालों का अंदाज़ा हो जाएगा और आप को सबके लिए इंतज़ाम करने में कोई दिक्क़त नहीं आएगी …चाहें वह उनको ठहराने का इंतज़ाम हो या खिलाने पिलाने का।"
गुप्ता जी शून्य में देखते हुए कहीं खो गए थे....शायद mental maths कर रहे थे। जैसे जैसे उनके दिमाग में लोग जुड़ रहे थे वैसे वैसे उनके चेहरे की हवाईयों की गिनतियाँ भी बढ़ रही थीं।
"यह तो साढ़े तीन हज़ार तक पहुँच गया और अभी कुछ और भी जोड़ने हैं।"
"बिलकुल ठीक। अब रूपए 1,000 per plate के हिसाब से सिर्फ़ एक time का खाने का हिसाब लगा लीजिये …तो हुआ पैंतीस लाख रूपए। बाकी शादी के खर्चे अलग।"
"आपको क्या लगता है ? मुझे इनमें से कुछ नाम कम कर देने चाहिए ?"
"तो फिर करीबी लोग तो बुरा मान जाएंगे ?"
"अरे ! आप ही ने तो कहा अभी कि बुलाया जाना उनका कोई right नहीं है। मेरी मर्ज़ी है.... जिसे चाहूँ उसे ही बुलाऊँ।"
"और न बुलाए जाने पर लोग बुरा मान जाएँ तो ?"
"जो सही माने में क़रीबी हैं वह क्यों बुरा मानेंगे ?"
गुप्ता जी को आख़िर बीन का राग समझ आ गया था और वह उसकी धुन पर थिरकने लगे थे।
शायद आइन्दा से वह न बुलाये जाने पर कोई एतराज़ भी न करें....उनका तो मुझे मालुम है पर बाकी लोगों की अभी भी कोई गारंटी नहीं।
आप भी जिसे चाहें बस उसे ही बुलाएं (अपना budget देख कर)
और जिनको न बुलाएं उनको बिंदास बोलिए Ooopz !!!
haaa haaaaaaaaaaaaaaaa
ReplyDeletegood satire!
ReplyDeleteWah wah
ReplyDeleteNice one..Enjoyable reading.
ReplyDeleteGood satire! Enjoyed reading!
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