जी नहीं !!! यह उन आज़ादी के परवाने सरफरोशों के बारे में नहीं है बल्कि यह उन सरफिरे सरफरोशों के बारे में है जो पूरी ज़िंदगी गुज़ारने से पहले ही अपनी बेवकूफ़ी के कारण बेवजह दुनिया से कूच कर गए। सिर्फ 2014 में भारत में इनकी संख्या 75,000 थी और यह सब 15 वर्ष से 34 वर्ष आयु के बीच थे।
निकले थे यह कह कर कि 'अभी आता हूँ' मगर ऐसा सर पर कफ़न बाँध कर motorcycle/scooter चलाया कि वापस आए तो चिथड़ों में लिपटे हुए या चिथड़ा बन के। हर एक यही सोच के निकला था कि वह तो उन 75,000 में हो ही नहीं सकता मगर… ग़लत।
एक बार यह सड़क पर आ गए तो यह जान की बाज़ी लगा देते हैं गन्तव्य तक पहुँचने तक। घर में, दफ़्तर में, कॉलेज में, बाजार में…कहीं भी इन्हें इतनी जल्दी नहीं होती जितनी सड़क पर आ कर। एक kick मारते ही यह गति और वीरगति के फर्क को कम कर देते हैं। क़िस्मत ने साथ दिया तो ठिकाने पहुँच जाते हैं नहीं तो ठिकाने लग जाते हैं।
अभी कुछ दिन पहले ही एक हाई कोर्ट ने पुलिस को आदेश दिया कि helmet को अनिवार्य बनाने की दिशा में तुरंत कार्यवाही करें। अरे भैय्या ! अगर दस्त लगे हों तो huggies पहनाने से नहीं रुकेंगे....दस्त का इलाज करें। समस्या की जड़ में घुस कर समाधान ढूंढें।
कुछ देर के लिए सड़क पर खड़े हो कर देखिये कि ये motor cycle/scooter वाले कितना बेबाक, बेधड़क और बेरहम हो कर सड़क पर चलाते हैं। अगर कभी computer पर war games खेले हों तो आपको अंदाज़ होगा कि जिस तरह चारों तरफ से missiles, राकेट, bullets, बम, meteoroids आदि अचानक दायें, बाएं, आगे, पीछे, ऊपर, नीचे से प्रगट होते रहते हैं वैसे ही हमारे ये दुपहिए पर सवार शूरवीर न जाने अचानक कहाँ कहाँ से प्रगट हो जाते हैं और आप, चाहें पैदल हों या गाड़ी चला रहे हों, अपने आप को और इनको बचाने का प्रयत्न करते रह जाते हैं। पर कुछ सरफ़रोश, despite your best efforts, आपकी गाड़ी से आ कर खुद ही ठुक जाते हैं…बिल्कुल ऐसे जैसे बरसाती कीड़े रात में खुद ही headlight से टकरा टकरा कर मरते हैं।
ऐसे में कानून के रखवाले सिर्फ यह देखते हैं कि दोनों में से बड़ी गाड़ी कौन सी थी और उसको rash and negligent driving में झपेट देते हैं। और यही बात इन सरफरोशों को और बेबाक, बेधड़क और बेरहम बना देती है। ये जानते हैं कि ये लोग सड़क पर कितना भी बड़ा गुनाह कर लें, इनको कोई कुछ नहीं कहेगा।
हमारे एक पडोसी को इस बात का बहुत घमण्ड था कि उनका बेटा कितने भी सड़क के क़ानून तोड़ ले पर उसे कोई पकड़ नहीं पाता। क्यों ? .... क्योंकि 'he knows how to handle bloody policewalas'. यह उनका favorite वाक्य होता था। 'Helmet नहीं पहना ? ये लो 100 रुपय' … 'सिग्नल jump किया ? ये लो 100 रुपय' … 'over-speeding करी ? ये लो 100 रुपय'। मगर एक दिन मौत ने उससे 100 रुपय लेने से मना कर दिया और अपने साथ ले गई। पैसे के घमण्ड में वह भूल गए कि सारे कानून, जिन्हें उनका इकलौता बेटा तोड़ता था और जिस बात का उनको गर्व भी था, उनके बेटे की सुरक्षा के लिए ही बने हैं।
मगर इन लोगों को समझाएं कौन। एक बार इनको इनकी ग़लती पर समझाने की धृष्टता तो कर के देखिए, अगर बहुत शरीफ़ होगा तो चंद भद्दी गालियां दे कर आपको छोड़ देगा वरना तुरंत दबँग-3 बन जायेगा।
एक रात एक mobike वाले ने मेरी गाड़ी को बाएं से overtake किया और अचानक मेरी गाड़ी के ठीक सामने आ गया । वह 'अचानक' इतना अचानक था कि अगर मैंने ज़ोर से ब्रेक नहीं लगाया होता तो उसका परिवार ग़मी mode में चला गया होता। गाड़ी रोक कर मैंने उसे समझाने की कोशिश की तो वह चढ़ लिया "आपको गाड़ी चलाने की तमीज़ नहीं है तो किसी मैदान में चलाओ। मेरे चलाने से आपको क्या तकलीफ़ हो रही है ?"
मैंने बहुत प्यार से कहा "भाई, मेरा काम है तुमको समझाना। बाकी तुम समझो या न समझो तुम्हारी मर्ज़ी, मुझे क्या। रही बात तकलीफ़ की तो…घी, लकड़ी, चन्दन, अगरबत्ती वगैरह का इंतज़ाम तो हो जायेगा पर इतनी रात में नहाने में मुझे तकलीफ़ तो होगी ही।"
कुछ लोग helmet पहनने के बजाए उसे handle पर लटका कर mobike चलाते हैं। यमराज अगर आ भी गए तो उन्हें helmet दिखा कर बोल देंगे 'प्रभु ! यह महा मृत्युञ्जय यंत्र लटका है मेरे पास। जाइये किसी और को उठाइये।'
40 कि.मी. की रफ़्तार से जाती हुई एक ट्रक और एक कार के साढ़े तीन फ़ीट के फ़ासले के बीच से एक ने 50 कि.मी. की रफ़्तार से अपनी mobike निकाल दी। रोक के उससे पूछा "ऐसी भी क्या जल्दी है भाई जो इतनी रफ़्तार से जाती हुई दोनों गाड़ियों को बीच में से overtake किया ?"
"मैं तो ऐसे ही चलाता हूँ। तुझे क्या ?"
मैंने कहा "भाई, अगर दोनों में से एक भी गाड़ी का steering बहक गया होता तो तुम चपक कर two dimensional हो गए होते। खुरच खुरच कर छुटाए जाते। तुम अगर हमेशा इतनी जल्दी में रहते हो तो मुझे तो शक है कि तुम कहीं अपने बड़े भाई से भी पहले पैदा तो नहीं हो गए थे ? अब ज़िंदा बच गए हो तो घर जा कर पूछना ज़रूर।"
हम गंगाराम की ज़मानत कराने गए। बेचारा 15 दिन से accident case में पुलिस lock-up में बंद था।
हमने कहा "गंगाराम, ट्रक संभाल कर चलाया करो भाई। बताओ …motorcycle वाले को ठोक दिए ?"
"अरे ससुर ! 35 साल से हम तो बहुत संभाल के चलाते आ रहे हैं। ऊ कमीना मोबाइल फुनवा गर्दन टेढ़ी कर के गाल और कंधे के बीच दबा कर किसी से बात करते करते अचानक सड़क के बीचों बीच आए गवा। हम तो बहुत हौरन बजाए और ब्रिक भी लगा दिए रहिन। वही सुसरा हमार खड़ी टिरक के नीचे आए गवा। अब पुलिस हमार गलती बताए रही है। हम तो चौथी फेल, पर साहब लोग तो पढ़ा लिखा है। समझता ही नहीं। जउन बड़ी गाड़ी देखे गलती उसी की। ई साब लोग अँधा हैं का ? लउकत नाहीं ? ई फटफटी (motorcycle) वाले लाल बत्ती पर रुकत नाहीं, रांग सैड (wrong side) पर चलावें, तीन-तीन चार-चार पांच-पांच पसिंजर बिठावे, स्पीड ब्रेकर पर गाड़ी कुदावें…। बाएँ साइड से ट्रक को overtake करे। अब साढ़े छह फिट की ऊचांई पे हमें का पता ई बाएं हाथ से निकस रहा। ई सब सर्कसिया लोग पुलिस वालों और जज साहब को न दीखे है। बस.… पकड़ के गंगाराम को बंद कद्दौ।"
गंगाराम का उबाल चालू रहा।
"बाबू ! ई का कारन है फटफटी का बिज्ञापन। टीवी पर फटफटी अइसन दउड़ात हैं की हिमालय की चोटी से कुदाय के सीधा बम्बई की मरीन डिराइव पे टपकाए दिए। पहिया में से आगि निकरे सो अलग। लरिका लोग ससुर ऐसा कापी मारिन कि आखिर मा बाप मुँह मां आगि देई। सिगरेट-दारू का बिज्ञापन बंद किए तो ई काहे नाहीं ? और ई फटफटी चलाना सीखे को से ? मोटर स्कूल तो जइबे न। दोस्त सिखाए, भैय्या सिखाए और मजा ले ले के जीजाउ सिखाए। गिअर बदला…किलच छोड़ा और आ जाब सड़क पे और फेर दिखा सर्कस पब्लिक को।"
गंगाराम सही था। वाकई, आज तक किसी मोटर ड्राइविंग स्कूल वाले को two-wheeler सिखाते नहीं देखा। कमाल है....जो बात हमारे चौथी फेल गंगाराम को समझ आती है वह इतने पढ़े लिखे साहब लोगों को क्यों नहीं आती ?
इसका बहुत बड़ा कारण है कि क़ानून बनाने वाले और उनको लागू करने वाले बड़े साहब लोग जब सड़क सुरक्षा की meetings में जाते हैं तो गाड़ी में पीछे बैठते हैं और siren बजाती हुई उनकी गाड़ियां फर्राटे से सड़क पर निकल जाती हैं। Meeting में जब इस मुद्दे पर बहस होती है तो उनको असली समस्या का आभास भी नहीं होता। काजू चबाते चबाते अल्टी पल्टी कुछ भी समाधान झोंक देते हैं और अपना नाम मीटिंग के minutes में देख कर बहुत चौड़े हो जाते हैं।
उन meetings में गंगारामों को बिठाइये हुज़ूर…कानून में संशोधन करिए…सड़क पर इन छुट्टे सांडों का सर्कस बंद करवाइए और फिर देखिए साल में कितने कम मरते हैं।
दो शब्द सरफरोशों के लिए भी - "भाई ! यह सारे क़ानून तुम्हारी सुरक्षा के लिए बने हैं। इनको तोड़ने से तुम रजनीकांत नहीं बन जाते। सड़क पर बहादुरी दिखाते दिखाते अगर यमराज की नज़र तुम पर पड़ गई तो घर पहुँच कर कोई यह नहीं कहेगा कि 'बेटा आ गया' या 'पति आ गया' या 'पापा आ गए'। सब कहेंगे "Body आ गई।"
मान लो तो ठीक नहीं तो Ooopz.
It was good one and timely. Actually such acts by motor cyclists and other two wheeler drivers without helmet and a smartphone pressed between ear and shoulder is a common sight here in Moradabad. I see everyday hundreds of such motorcyclist speeding and honking pressure horns from my balcony.
ReplyDeleteYeh vishay gahari aur chinthaneey hai. Aur aap bahuth badiya likha hein. Congrats
ReplyDeleteYeh vishay gahari aur chinthaneey hai. Aur aap bahuth badiya likha hein. Congrats
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