Description

जब आप अचानक कोई ऐसा काम कर जाते हैं या बात कह जाते हैं जिसका सामने वाला बुरा मान सकता है तो उसके हमला करने से पहले ही आपके पास Ooops या Ooopz कहने का license होता है। ऐसी आवाज़ निकालने के बाद सामने वाले को सिर्फ ख़ून का घूंट पी कर चुप रह जाना चाहिए। ऐसा अच्छे शिष्टाचार के अंतर्गत आता है।

इस license का प्रयोग आप कभी भी कहीं भी कर सकते हैं। बस, Ooops की आवाज़ सही समय पर निकलनी चाहिये। ज़रा सी देर काफी नुक्सान पहुँचा सकती है।

कुछ लोग पहले से ही जानबूझ के गुस्ताख़ी कर के Ooopz करने की कला जानते हैं। काफी सफल हैं वे लोग।

Ooopz blog में मैंने कुछ दूसरों के Ooopz पकड़े हैं और कुछ Ooopz खुद भी किये हैं।

आइये इन सब Ooopz का आनंद उठायें।

(इस blog पर मेरे कुल 35 व्यंग हैं. पृष्ठ के अंत में 'Newer Posts' या 'Older Posts' पर क्लिक करके आगे या पीछे के पृष्ठों पर जा सकते हैं)

Wednesday, 21 October 2015

नयनसुख

"डाक्टर साहब ! हमें खुली आँखों से कुछ दिखता नहीं।"
"बड़ी अजीब तकलीफ़ है। बंद आँखों से न दिखना तो समझ आता है लेकिन खुली आँखों से तो दिखना चाहिए।"
"इससे ज़्यादा अजीब बात तो यह है कि जब किसी और की आँखें बंद होती हैं तो हमें सब दिखाई देने लगता है।"
"आप सब को यही तकलीफ़ है ?"
"जी हाँ !"
"इसका मतलब आप सब BMC में काम करते हो ?"
"सही बोला। मगर आप को कैसे मालूम ?"
लो कर लो बात।  इसमें इतना मुश्किल क्या ? इन लोगों का अंधापन तो पूरा मुंबई जानता है। 
आठ लोग, जिनमें सात मासूम बच्चे भी थे, मुंबई के 'सिटी किनारा' रेस्टोरेंट की आग में जल कर मर गए। उन बेकसूरों की आँखें बंद हुई और BMC की आँखें खुल गईं और उन सब को  वह सब दिखाई पड़ने लगा जो कई साल से सामने होते हुए भी नहीं दिख रहा था। उस हादसे के तीन दिनों के अंदर ही उन्होंने 675 रेस्टोरेंट का निरीक्षण कर डाला। अचानक उन्हें सभी रेस्टोरेंट में ख़ामियां नज़र आने लगीं और सुना है अभी और रेस्टोरेंट भी उनके निशाने पर हैं। यह सारी अनियमितताएं बरसों से थीं मगर जब तक कुछ सिलिंडर न फटें…आग न लगे…मासूमों की बलि न चढ़ जाए कुम्भकरण की आँख नहीं खुलती।  
वाह मेरे नयनसुख। 
या तो तुम्हारी आँखें वाकई ख़राब हैं जो खुली आँखों से भी कुछ नहीं दिखता या तुम्हारी आँखों पर नोटों की पट्टी लगी होती है। (जैसा कि कई लोगों ने खुलेआम बताया भी है)। हर रेस्टोरेंट के सामने का फुटपाथ encroachment का शिकार है…आते जाते सबको दिखता है पर तुमको नहीं। शायद BMC ऑफिस से घर तक तुम लोग by air चलते हो ? इसमें तो कोई दो राय नहीं कि तुम लोग हवा में ही उड़ते रहते हो। कभी ज़मीन पर भी अवतरित हो जाओ नकारा लोगों…शायद हादसा होने से पहले ही कई मासूमों की जानें बच जाएँगी। 
अभी रेस्टोरेंट में आग लगी है तो तुम रेस्टोरेंट को लक्ष्य बना रहे हो मगर एक नज़र स्कूल, कॉलेज, malls, movie halls, marriage halls, सुपर मार्किट  वगैरह पर भी डाल लो…या वहां के हादसे का अलग से इंतज़ार करना है ? 
कुछ तुम्हारा लालच और निकम्मापन रहा और कुछ रेस्टोरेंट वालों की ज़्यादा कमाने की हवस रही जो त्यौहार के मौसम में तुम लोगों ने कुछ हँसते खिलखिलाते घरों के चिराग बुझा दिए।  इसकी हाय लगेगी…बराबर लगेगी। हर दिल में कुम्भकरण का पुतला जलाया जाएगा। 
मगर दशहरे पर रावण को कैसे भूल सकते हैं ? नोटिस पे नोटिस पे नोटिस दे दो मगर ये रेस्टोरेंट के मालिक चंद extra सिक्के कमाने के लिए पब्लिक की जान से खेलते हैं। क्या इन पर दफ़ा 307 (attempt to murder) नहीं लगा सकते ? इतना सब होने के बाद भी जब raids हो रहे हैं तो Hotel & Restaurant Association वाले बिलबिला रहे हैं कि BMC को कानून का पालन करना चाहिए और रेस्टोरेंट पर ताला डालने से पहले नोटिस देना चाहिए। 
किस बात का नोटिस Mr. Ravan ? BMC को पता चलने से पहले ही तुम को मालूम होता है कि तुम कौन सा कानून तोड़ने जा रहे हो। Fire NOC न लेना, extra सिलिंडर रखना, fire-extinguishers न होना, हेल्थ लाइसेंस न लेना, encroachment करना, बिल्डिंग में बड़े पैमाने पर फेर-बदल करना…इनमे से कौन सी ऐसी चीज़ है जो तुम्हें BMC के नोटिस मिलने के बाद पता चलेगी कि तुमने यह अनियमितता करी है ? कानून तोड़ो तुम और पालन करे BMC. क्या गज़ब का दिमाग़ पाया है आप लोगों ने।  
सड़क के बीच बैठ कर तुम टट्टी (ooopz) करो तो सबसे पहले तो तुम को मालूम होगा कि तुम कुछ ग़लत कर रहे हो (क्योंकि जो निकल रहा है वह तुम निकाल रहे हो)। इसमें नोटिस की क्या ज़रुरत ?और जब तक इस बात का नोटिस आएगा भी, सारा काण्ड ख़त्म हो चुका होगा और तुम फ़ारिग हो चुके होगे।
जब आग लगेगी तो तुम उसको बोलना "हे आग !!! Hold on. मेरे पास BMC का नोटिस है और मैं उसका जवाब देने जा रहा हूँ। ज़रूरत पड़ी तो stay लाऊँगा…High Court तक जाऊँगा…Supreme Court का दरवाज़ा खटखटाऊँगा। तब तक के लिए please wait."
रावण की बुद्धि भी ऐसे ही भ्रष्ट हो गई थी।       
हम सब जानते हैं कि जब तक सिटी किनारा रेस्टोरेंट की आग की गर्मी रहेगी…मीडिया को इस समाचार को उछालने में झस दिखाई देगा … तब तक ये raids चलेंगे। उसके बाद सब पहले की तरह शांत हो जाएगा। रेस्टोरेंट फिर से अनियमितताएं करने लगेंगे, BMC को दिखाई पड़ना कम पड़ जाएगा और एक बार फिर मुंबई बारूद के ढेर पर बैठ कर नए हादसे की चिंगारी की प्रतीक्षा करेगा।   
BMC और रेस्टोरेंट वाले उसी शीतकाल की प्रतीक्षा कर रहे हैं कि कब सब ठंडा पड़े। मगर उन घरों का क्या जिनके लाड़ले बिना वजह किनारा रेस्टोरेंट की आग में शहीद हो गए ? उनके दिलों का घाव तो कभी भी न भरेगा।  
आइए उन लोगों की शहादत को बेकार न जाने दें। कानून में थोड़ा सा बदलाव लाएं : 


     1. हर रेस्टोरेंट के बाहर बड़ा बोर्ड लगा होना चाहिए जो ये दर्शाए कि :
         a . Fire NOC मौजूद है (Expiry date के साथ)
         b. निर्धारित संख्या में Fire Extinguishers मौजूद हैं (Expiry date के साथ)
         c. Health License मौजूद है (Expiry date के साथ)
         d. Extra गैस सिलिंडर नहीं हैं और जो हैं वह सुरक्षित स्थान पर ही हैं
         e. ग्राहकों के बैठने का स्थान सुरक्षित और अधिकृत है

     2. हर वह TV चैनल, website या mobile application (जैसे Zomato), जो रेस्टोरेंट्स के बारे में, उनके खाने और माहौल के बारे में बताते हैं, उनके लिए  यह अनिवार्य होना चाहिए कि वह हरेक रेस्टोरेंट के बारे में उपरोक्त पांच बातों की भी पुष्टि करें।


     3. रेस्टोरेंट के विज्ञापनों में इन पांच की पुष्टि अनिवार्य होनी चाहिए।   

जिस किसी रेस्टोरेंट के बाहर यह बोर्ड नहीं लगा हो, लोगों को उसका बहिष्कार करना चाहिए। आम जनता को, कम से कम मरने से पहले ही, ये जानने का अधिकार होना चाहिए कि जहाँ वह बैठने जा रहे हैं वह सुरक्षित है या जौहर कुण्ड है। 


4 comments:

  1. Rt. aaj ki duniya aisi hai, jeb thak problem/issue hamara nahi or ham thak nahim pahunche thab thak ham kyom react karem.
    Our power of reaction is adversely affected as we are very much self centered now.

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  3. Very rightly said.. It is very true for us Indians. It has become a rule that we only wake up when a incident like this happens. May it be not wearing the helmet, open manholes or big potholes on the road. encroachment on the roads by vendors making pedestrains to walk on the road and sometimes die under a bus, or the pathetic situation of the slum dwellers who sometimes die if there is a fire in the colony. You have rightly said the BMC and similar such organisations sleep like kumbhkaran waiting for such disasters to happen and then the media has got some masala to show on tv and write about it and the Govt comes in action to form committees and allocate funds to study how the problem can be avoided (again till the next one occurs).. Sad state of affairs

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  4. We the educated lot - shdn't we also take/share some responsibility of making such enquiries when we visit such places - I mean the service industries like restaurants, service centers, nursing homes etc whether they are meeting with all the mandatory regulations? If they are not then we should bring it to the notice of authorities/ advertise the fact among our friends and families or on the net so that such places become infamous and people think twice before visiting there. I'm only suggesting that it will be a small step towards making more people aware of their rights and what is expected of them. May be it will bring an evolutionary change in the outllok of people. Remembe I'm no poletician or a government servent, I'm just a retired individual who's very critical of the service Industry

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Thank you for the encouragement.