Description

जब आप अचानक कोई ऐसा काम कर जाते हैं या बात कह जाते हैं जिसका सामने वाला बुरा मान सकता है तो उसके हमला करने से पहले ही आपके पास Ooops या Ooopz कहने का license होता है। ऐसी आवाज़ निकालने के बाद सामने वाले को सिर्फ ख़ून का घूंट पी कर चुप रह जाना चाहिए। ऐसा अच्छे शिष्टाचार के अंतर्गत आता है।

इस license का प्रयोग आप कभी भी कहीं भी कर सकते हैं। बस, Ooops की आवाज़ सही समय पर निकलनी चाहिये। ज़रा सी देर काफी नुक्सान पहुँचा सकती है।

कुछ लोग पहले से ही जानबूझ के गुस्ताख़ी कर के Ooopz करने की कला जानते हैं। काफी सफल हैं वे लोग।

Ooopz blog में मैंने कुछ दूसरों के Ooopz पकड़े हैं और कुछ Ooopz खुद भी किये हैं।

आइये इन सब Ooopz का आनंद उठायें।

(इस blog पर मेरे कुल 35 व्यंग हैं. पृष्ठ के अंत में 'Newer Posts' या 'Older Posts' पर क्लिक करके आगे या पीछे के पृष्ठों पर जा सकते हैं)

Tuesday, 16 February 2016

चुनरी में दाग़

मिल गया भैय्या मिल गया. मीडिया को बैंकों के NPA को ले कर उछालने का मौका मिल गया. नादान हैअनभिज्ञ है मीडिया ... कभी बैंक में काम किया होता तो शायद पढ़े लिखों की तरह इस मुद्दे को सामने लाते. पूरे एक लाख पच्चीस हज़ार करोड़ को “robbery” बोलने की हिमाक़त न करते. महज़ हेलमेट लगा कर चलने का मतलब यह नहीं है कि हम अपना स्कूटर ठोकने के इरादे से निकले हैं. विशेषज्ञों को चैनल पर बुलाते हैं पर उनको बोलने का मौका ही नहीं देते. मज़े की बात यह है कि चैनल पर बहस की जहाँ से शुरूआत होती है वह वहीँ ख़त्म भी होती है. विशेषज्ञ बेचारे अपना सा मुंह ले कर आते हैं और अपना सा मुंह ले कर वापस भी चले जाते हैं. अनुभवहीन मीडिया वाले उनसे, वित्त मंत्रालय से, भारतीय रिज़र्व बैंक से भी ज़्यादा ज्ञानी होते हैं और जिस बात का मन बना चुके होते हैं उसी को चिल्ला चिल्ला कर अंत तक बोलते रहते हैं.

उनके लिए तो रेप और बैंकों के NPA मामले में कोई फ़र्क नहीं है. रेप के मामले को ये लोग इतना उछालते हैं कि लोगों का ध्यान रेप करने वाले की तरफ़ न जा कर लड़की पर ही अटक जाता है. बजाय रेप करने वाले की  निंदा हो...लड़की को बेचारा बना दिया जाता है और वह महज़ एक रोचक किस्से का हिस्सा बना दी जाती है...मुंह छुपाए घूमने के लिए बाध्य. रेप करने वाला शान से, मुंडी ऊपर करके घूमता है.

ठीक वैसे ही लोन ले कर वापस न करने वाले शान से मुंडी ऊपर उठा कर घूमते हैं और मीडिया बैंकों को NPA के लिए अपना लक्ष्य बनाता है. जैसे रेप का नाम लड़की के लिए ज़िन्दगी भर के लिए एक बदनुमा दाग़ बन जाता है वैसे ही NPA भी बैंकों के लिए एक बदनुमा दाग़ बना दिया गया है...लोन पी जाने वालों के लिए नहीं. वह लोग जानते हैं कि बैंकों के लोन recovery के हथियार बहुत कमज़ोर हैं...या बिल्कुल हैं ही नहीं. 10-15 साल तक वसूली प्रक्रिया का चलना आम बात है. तब तक वह बैंक के पैसों पर ऐश करते हैं. मेरी समझ में नहीं आता कि लोन लेते समय उसने DP Note sign कर के कहा था कि On Demand I Promise To Pay...यानि मांगे जाने पर ब्याज़ समेत पैसा वापस करने का मैं वादा करता हूँ. क्या यह एक कानूनी दस्तावेज़ काफ़ी नहीं है उससे वसूली के लिए ? इसकी इतनी नाकदरी क्यों ? क्यों बनाया जा रहा है उसे इतना कमज़ोर ? और अगर यह इतना ही बेअसरदार है तो इसे लेने की ज़रूरत ही क्या है ? बकायादारों के वकील 75 तरह के documents और दलीलों में कोर्ट को उलझा कर तारीख़ पर तारीख़ लेते रहते हैं और नए नए हथकंडे अपनाते हैं जिससे लोन वापसी से जितना और जब तक बचा जा सके बच लें. कुछ करोड़ रुपयों के लिए कुछ लाख वकीलों को देने में क्या खराबी है ? आखिर वह लाखों भी बैंक से ही लोन में आए थे...उनके अपने नहीं थे.

क्या कभी किसी TV channel ने कहा है “गौर से देखिये इस इंसान को जो बैंक से लोन ले कर उसे वापस करने में आनाकानी कर रहा है” ? नहीं...कानूनन उन बकायादारों की इज्ज़त का ध्यान रखना ज़रूरी है इसलिए उनका नाम खुलेआम बताना उचित नहीं है. मगर मीडिया, बिना मामले की तह तक जाए ही, बैंकों पर कीचड़ उछाले – इस बात की आज़ादी है. भाई !!! जिनको अपना पैसा वापस लेना है उनको बदनाम करने की जगह उनको बदनाम करो जो पैसा ले कर वापस करने की नीयत नहीं रखते हैं.

अगर कभी बैंक वाले वसूली के लिए सख्ती बरतते हैं तो यही मीडिया वाले बकायादारों के ख़ुदा बन कर अपने अपने चैनल पर उन बैंकों के ख़िलाफ़ चिल्लाना शुरू कर देते हैं. कुछ NGOs का भी वात्सल्य उमड़ पड़ता है. ऐसे में जिसको वापस करने की नीयत होती है वह चूहा भी शेर बन कर मना कर देता है. उसे मालूम है कि मीडिया में इतनी बुद्धि नहीं है जो वह सही जगह पर वार करे.
कई बार तो बैंकों को रुग्ण इकाइयों के उपचार के लिए बाध्य किया जाता है. पहले यह तय कर लिया जाए कि आप बैंकों से बैंकिंग कराना चाहते हैं या बैंक को अस्पताल बनाना चाहते हैं ? और अगर सामाजिक उद्देश्य से उपचार करवा रहे हैं तो थोड़ा सब्र रखिये ऐसी इकाइयों को वापस non-NPA बनने के लिए.

बैंकों के पास लाखों पत्र आते हैं जिनमें इकाइयों के मालिक बड़ी शान से लिखते हैं “हमें अत्यंत हर्ष के साथ यह सूचित करना है कि हमारी इकाई NPA हो गई है (या रुग्ण हो गई है). कृपया इसके उपचार के लिए Reserve Bank द्वारा निर्धारित दिशा निर्देशों के अनुसार विभिन्न रियायतें देने का प्रबंध करें.” क्या कभी इन लोगों ने अपने बेटे के लिए Tata Memorial Centre को पत्र लिखा है कि “आपको जान के हर्ष होगा कि मेरे बेटे को कैंसर हो गया है ?”

श्री श्री प्रेस एंड मीडिया जी !!! लोन देने से पहले ठोक बजा के देखा जाता है पर किसी के माथे पर तो नहीं लिखा कि वह ईमानदार है या लोन लेने के बाद उसकी नीयत बदल जाएगी. अब प्रेस और मीडिया को ही लेलो...आप में से कितनों के माथे पर ईमानदार लिखा है ? सारा हिंदुस्तान जानता है कि चंद सिक्कों के लिए आप लोग सच को कितना तोड़ मरोड़ के दिखा सकते हैं. आप लोगों से ईमानदारी की उम्मीद ही ख़त्म हो गई है. मगर सब लाचार हैं. जो है उसी को झेल रहे हैं. वही हाल बैंकों का है. जैसे भी हालात हैं वे उनसे जूझ रहे हैं. इसलिए बैंकों पर कीचड़ उछालने से पहले किसी पढ़े लिखे से जा कर समझ लो कि भैय्या माजरा क्या है और उन लोगों को चैनल पर ला कर उन्हीं को बोलने दो. तुम अपनी गुटर गूँ बंद रखो.


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