वाह रे चिन चिन चू !!! क्या ग़ज़ब का हथियार बनाया तुमने. न बम न पटाखा न धुआं न चिंगारी...बस सुर्र से नाक-मुँह में घुसेड़ दिया और भैय्या पटाक. और अगर न-पटाक...तो आगे फैलाते रहेंगे.
वायरस बनाया भी और नाम भी क्या खूबसूरत दिया...कोरोना. नाम सुन कर ऐसा लगता है जैसे अभी स्टेज पर कोई कोरोना नाम की मस्त अप्सरा उतर कर आयेगी और अपने जलवे दिखाएगी. अगर कुछ साल पहले तुमने इसे launch किया होता तो हमें फिल्मों में अजीत साहब के साथ दो की जगह तीन तीन हसीन असिस्टेंट देखने को मिलतीं – सोना, मोना और कोरोना. माँ कसम पब्लिक चवन्नी की जगह अठन्नी फेंक कर मारती पर्दे पर. ईना-मीना के साथ डीका का तो कोई चांस ही न बनता. नाक के साथ साथ, गाने में भी कोरोना घुस के बैठ गया होता.
कैसे रखा इतना प्यारा नाम ? हिंदुस्तान में तो जैसे ही डॉक्टर कहती है ‘मुबारक हो’, पूरा खानदान गूगल पर नाम ढूँढने में लग जाता है. सुंदर सा, अर्थपूर्ण नाम रखा जाता है लेकिन पूरी उमर उसको पप्पू, टिल्लू, मुन्नी, बिल्लो ही बुलाया जाता है. मगर मजाल है कि कोई कोरोना को कर्रू या कुन्ना कह के बुलाए ? बिना अटके...बिना ज़बान लड़खड़ाए त्रुटिरहित उच्चारण हो रहा है - कोरोना.
अरे, अमरीका की छोड़ो...वह तो ‘क’ बोल भी नहीं पाते. जब भी ‘क’ बोलते हैं, उनकी हवा भी साथ में निकल जाती है और ‘क’ का ‘ख’ हो जाता है...खोरोना. खैर, हवा तो तुमने उनकी वैसे भी निकाल ही दी.
वायरस भी तुमने ऐसा बनाया जो तुम्हारी चपटी नाक के नथुनों में आसानी से घुस नहीं पायेगा लेकिन दुनियां में सब तो चपटी नाक वाले हैं नहीं. और अब तो सब नाक फुलाये बैठे हैं. इस जघन्य पाप की सज़ा तुम्हें मिलेगी...बराब्बर मिलेगी. सारे देशों ने तुम्हारी पुंगी बजाने की ठान ली है. उन्होंने सार्वजनिक मधुमेह घोषित कर दिया...यानि नो चीनी. न तो कोई चीनी के पास जायेगा और न ही उसे अपने पास भटकने देगा. टोटल बहिष्कार और टोटल शुगर फ्री. तुम अपनी मिचमिची आँखों में से झाँक कर देखना आगे तुम्हारा क्या हाल होता है.
सब को पागल कर दिया है तुमने. एक कहता है घर में घुस के रहो तो सरफ़रोश कहता है ‘क्यों बैठूं घर में ?’ एक कहता है ‘sanitizer नहीं लगाओगे तो कोरोना से मर जाओगे.’ तो दूसरा कहता है ‘sanitizer लगाओगे तो स्किन कैंसर से मर जाओगे.’ एक कहता है ‘मास्क नहीं लगाओगे तो कोरोना से मर जाओगे तो दूसरा कहता है कि मास्क लगाओगे तो कार्बन-डाई-ऑक्साइड से मरोगे.’ असली पागल तो आम जनता हुई है. बाहर निकलेगा तो कोरोना से मरेगा...घर में रहेगा तो भूखा मरेगा. यह करूँ तो मरुँ...न करूँ तो मरुँ...तो क्या करूँ जो न मरुँ ? सही रास्ता दिखाने वाले, हमेशा की तरह, अपनी दुकान चलाने में लगे हैं...चाहें वह धर्म की हो या वोट बैंक की...पुरानी पीढ़ी तो झेल चुकी, आज की पीढ़ी झेलने की आदत डाल रही है और नई पीढ़ी ?
नई पीढ़ी अब A for Apple नहीं बोलती. (Apple बेचने वाला बेचारा ख़ुद भूखा मर रहा है. Apple और ठेले के साथ ग़ायब है). B for Ball भी नहीं बोलते. (बॉल से खेलने वाला बचपन घरों में बंद हैं). होश सँभालते ही नन्हें मुन्नों ने जो देखा वही बोल रहे हैं. उनके लिए A for Ambulance, B for Breathlessness, C for Covid, D for Death हो गया है. Queen तो कभी देखी नहीं तो Q for Quarantine हो गया. माँ से ज़्यादा तो उन्होंने Mask देख लिए तो M for Mother कैसे कह दें ?
आज की पीढ़ी का हाल भी बदल गया है - पहले, लड़के वाले लड़की वालों को बताते थे कि लड़का क्या करता है. और अब, कोरोना आने के बाद, वह बताते हैं कि लड़का क्या क्या कर लेता है.
बड़े बड़े आक़ा अब work from home के नाम पे work for home कर रहे हैं. ऑनलाइन मीटिंग शुरू होते ही, पोछे के गीले हाथ लुंगी से पोंछ कर, हेडफ़ोन लगा कर, अपने जूनियर से पूछते हैं ‘बाक़ी बात बाद में, पहले यह बता कि अंडे उबालने के लिए कितनी सीटी देनी होती हैं ?’ और जूनियर भी कहता है ‘एक मिनट होल्ड करो सर, पापा से पूछ कर बताता हूँ.’
तुम्हारी दुम तो हमेशा से ही टेढ़ी थी पर कहते हैं कुत्ता जब पागल होता है तभी उसकी दुम सीधी होती है. और वह दुनिया को काटता है तो दुनिया पागल होती है.
लद्दाख़ में तुम्हारा लफड़ा तुम्हारे पागलपन की ही निशानी है और यह तुम्हारी दूसरी गलती होगी. सन 1962 में हिन्दी-चीनी भाई-भाई कर के धोखा दिए थे लेकिन अब हमारे यहाँ भाई वह भाई नहीं हैं. अब वह सुपारी उठा कर टपकाते हैं. पांच पांच सौ युआन में तुम्हारा एक एक फौजी तुम्हारे घर में घुस के टपका देंगे. खैर हमें इतना खर्चा करने की ज़रूरत भी नहीं है. 2 युआन का एक गुटखा आता है. हिमालय के बगल में ही हमारा यू.पी., बिहार है. एक ट्रक गुटका और पचास ठो यू.पी., बिहार वाले ट्रक में लाद के हिमालय पार भेज देंगे. तुम्हारे शार्प शूटर से कहीं सटीक निशाना होता है हमारे गुटखइयों का. तुम्हारी सेना के मुंह पे चुन चुन के इतनी पिच्च मारेंगे कि सारे कोरोना पॉजिटिव हो जायेंगे...दूसरा वुहान बना देंगे लद्दाख़ के दूसरी तरफ़. चिन चिन चू की जगह चुन चुन थू !!!
टाइम है अभी भी...लिकल लो...नहीं तो...आक़ थू !!!
Well written piece. Humorous thread is running through the blog.
ReplyDeleteThis was nice one...
अजीत साहब के साथ दो की जगह तीन तीन हसीन असिस्टेंट देखने को मिलतीं – सोना, मोना और कोरोना.
I can only add as supplement to your blog, our motto should be: चीनी कम।
Dr P.Sasidhar
Hillllllarrrrioussssss....
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