उधर घनश्याम भाई अपने तजुर्बे का परिचय देने में लगे थे।
"यह देखिए यह यादव जी का कुत्ता यहाँ छोड़े है अपनी निशानी।"
"आपको कैसे मालूम ?"
"19 साल से इस कॉलोनी में morning walk कर रहा हूँ। सिर्फ ढेरी की शकल, महक, रंग और ढेरी का साइज़ देख कर अंदाज़ा लग जाता है कि कौन breed के कुक्कुर (कुत्ता) की निशानी कैसी है। जर्मन शेफर्ड, पूडल, बुलडॉग, लैब्राडोर…सब की अलग अलग तरह की होती है। हमें मालूम है कौन किस breed का कुक्कुर पाले है…बस गू की शक्ल से कुक्कुर का और कुक्कुर की शक्ल से उसके मालिक की शक्ल का idea लगा लेते हैं।"
"क्या great रिसर्च करी है आपने।"
"इस कॉलोनी में रहना है तो रहने वालों से ज़्यादा कुत्तों पर रिसर्च करनी पड़ती है। अब यह देखिए…यहाँ मेजर साहेब हगाए हैं अपने कुत्तों को।"
"अब ये कैसे पहचाना आपने ? आप तो कुत्ते की poo पर डॉक्ट्रेट किये हुए हैं क्या।"
"तीन ढेरियाँ देख रहे हैं आप ? मेजर साहेब के तीन कुत्ते हैं। बहुत एका है तीनों में सो आपस में एक दूसरे को सूंघ सूंघ के आज़ू बाज़ू ही ढेरी बनाते हैं। हमारे ही गाँव से हैं मेजर साहेब। इनके बाप लोटा ले के सवेरे सवेरे रेलवे लाइन पर जाया करते थे। मेजर साहेब तो सुधर गए पर लगता है उनके कुत्ते मेजर साहेब के बाप पर गए हैं। मेजर साहेब भी उनको सड़क पर करता देख कर पिता श्री की याद में गदगद हो जाते हैं। अच्छा तरीका है साल भर तक पितृपक्ष मनाने का।"
"समझ में नहीं आता ये डिफेन्स वाले बड़ी बड़ी regiment को सिखा दिए पर अपने पालतू कुत्तों को ज़रा सी बात न सिखा पाए। उम्मीद है इनके घर वाले सही जगह पर जाते होंगे करने के लिए। नहीं तो कल से आप बोलोगे ये मेजर साहेब के बंटी की ढेरी है और ये मेजर साहेब की ख़ुद की।"
"अरे ! क्या civilian और क्या defense… कुत्ता पालते ही सब एक से हो जाते हैं।"
"अब कुत्तों को तो नहीं मालूम कि मालिक civilian है या defense वाला।"
कितनी बार इन लोगों को समझाया गया…धमकाया गया…सोसाइटी से नोटिस दिए गए पर नहीं साहब, न ये लोग माने और न इनके कुत्ते। करीब करीब हर कुत्तापालक की यही कहानी है। कुत्ता पाल लेंगे लेकिन उसे फ़ारिग कॉलोनी की सड़कों पर ही कराएँगे।
एक साहब, जो morning walk में कुत्ते के साथ बंधे हुए थे मैंने उन को टोका "यह क्या कर रहे हैं ?"
बोले "मैं कहाँ कर रहा हूँ। यह तो कुत्ता कर रहा है।" सही जवाब !!!
मैं बोला "आप तो पढ़े लिखे हैं। कुत्ते को इतना तो सिखा सकते हैं।"
"हमारे syllabus में कुत्तों को फ़ारिग कराने का chapter नहीं था।"
'तो फिर आप किस इंतज़ार में खाली खड़े हैं। लगे हाथों आप भी इसके बगल में फ़ारिग हो जाइए।'
अब समझ आया कि इस सब का कारण अशिक्षा है। इसीलिए यह लोग अंग्रेजी में कुत्ते पालते हैं और खुश रहते हैं।
मिसाल के तौर पर हम उसे हिंदी में बोलें कि कुत्ते का गू है तो उनको गाली लगती है मगर वो उसी गू को अंग्रेजी में poo बोलें तो कानों में घंटियाँ बोलती हैं और ऐसा लगता है मानो कोई चॉकलेट केक का वर्णन कर रहे हैं और उसको कहीं भी icing के साथ सजा सकते हैं।
अपने कुत्ते को hug करें…तो ये उनका family tradition है लेकिन अपने कुत्ते को publicly सड़क पर हिंदी में हग करायें (हगायें) तो नहीं मानते कि ये बदतमीज़ी होती है।
धर्मेन्द्र पा जी इसीलिए अपनी हर फिल्म में कहते हैं "कुत्ते, कमीने ! मैं तेरा ख़ून पी जाऊँगा।" लगता है उन्होंने कुत्ते के मालिक को सड़क पर कुत्ते को पू फिराते देख लिया होगा। तभी तो कुत्ते को कुत्ता और उसके मालिक को कमीना कह कर दोनों का ख़ून पीने की धमकी देते हैं। शायद धर्मेन्द्र पा जी के डर से कुत्ता या कमीना…कोई तो सुधर जाए।
(नोट : उपरोक्त रचना में 'गू' और 'हगना' शब्दों के लिए Ooopz . इससे ज़्यादा भद्दी गालियां इस blog पर वर्जित हैं।)
Wah Wah
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