Description

जब आप अचानक कोई ऐसा काम कर जाते हैं या बात कह जाते हैं जिसका सामने वाला बुरा मान सकता है तो उसके हमला करने से पहले ही आपके पास Ooops या Ooopz कहने का license होता है। ऐसी आवाज़ निकालने के बाद सामने वाले को सिर्फ ख़ून का घूंट पी कर चुप रह जाना चाहिए। ऐसा अच्छे शिष्टाचार के अंतर्गत आता है।

इस license का प्रयोग आप कभी भी कहीं भी कर सकते हैं। बस, Ooops की आवाज़ सही समय पर निकलनी चाहिये। ज़रा सी देर काफी नुक्सान पहुँचा सकती है।

कुछ लोग पहले से ही जानबूझ के गुस्ताख़ी कर के Ooopz करने की कला जानते हैं। काफी सफल हैं वे लोग।

Ooopz blog में मैंने कुछ दूसरों के Ooopz पकड़े हैं और कुछ Ooopz खुद भी किये हैं।

आइये इन सब Ooopz का आनंद उठायें।

(इस blog पर मेरे कुल 35 व्यंग हैं. पृष्ठ के अंत में 'Newer Posts' या 'Older Posts' पर क्लिक करके आगे या पीछे के पृष्ठों पर जा सकते हैं)

Friday, 24 June 2016

दीवाने अब्दुल्ले

राजन भैय्या को लेके इतना हंगामा क्यों है भई यह समझ में नहीं आया. पहले भी तो 22 गवर्नर आये और चले गए मगर पब्लिक का फोकस इसी बात पर रहा कि काम वाली बाई बदलनी है या वही रहनी है. मगर आज बड़े मुद्दों पर बोलना एक फैशन हो गया है. हर कोई अपनी राय देने में लगा है. 

र तो और साइकिल का पंक्चर बनाते बनाते कल्लू ने धमकी दे दी – “आज तो पिंचर आठ रूपए में लगा देता हूँ पर राजन भैय्या के जाते ही रेट अस्सी रुपए हो जायेगा. देख लेना मंहगाई सर पर चढ़ कर बोलेगी.”
मैंने उसे धमकाया “कम से कम तू तो ज्ञान मत बघार. 22 गवर्नर आए और गए. सरकारें बदल गईं. तेरे दादा से ले कर तू मंहगाई का पीछा ही करते रहे और पंक्चर ही बनाते रह गए. जिस दिन तू पंक्चर के 80 लेगा उस दिन टमाटर 800 रुपए होगा. तुझे क्या फर्क पड़ता है गवर्नर बदलने से ?”

बिट्टन चाचा के घर तो अलग ही समां था. चबूतरे पर चारपाई डलवा के जम गए और लगे देने भाषण 10-12 फालतू पब्लिक को बैठा के. “...मैं तो कहता हूँ राजन का जाना देश के लिए सही नहीं है. अब कहाँ से ढूंढोगे अगला गवर्नर ? सरकार को इस बात को संजीदगी से लेना चाहिए. चिराग लेके भी न मिलेगा दूसरा. मेरे हिसाब से दो-चार नाम हैं पर...”
भला हो चाची का. सबके सामने झाड़ पिला दी “जवान बेटी के लिए चार साल से दामाद तो ढूंढ नहीं पा रहे और चले हैं रिज़र्व बैंक का गवर्नर ढूँढने. एक बहु ढूंढ के लाये थे सो भी ऐसी कि घर में ही दो चूल्हे करा दिए सुसरी ने. किसी भी बेगानी शादी में अब्दुल्ला बन के ठुमकना ज़रूरी है क्या तुम्हें?” चचा ने सहम कर बीड़ी सुलगाई और संडास में आश्रय लिया.

मारे भैय्या जी...भाग्य से एक राजनीतिक परिवार में जन्म लिया और सब कुछ पका पकाया मिल गया. पैदा होते ही उनको लोग भैय्या जी बोलने लगे तो उनका असली नाम पता भी नहीं. मास्टरों को पीट पीट के बारहवीं पास करी और चक्कू के जोर पे सामने वाले की नक़ल करके अर्थशास्त्र में स्नातक हो गए. सामने वाला राशन दफ्तर में क्लर्क लग गया और भैय्या जी दो बार निर्विरोध चुने गए और पिछली बार सत्तारूढ़ पार्टी के कैंडिडेट की ज़मानत जब्त करा चुके हैं. चमचों से घिरे भैय्या जी अपने अर्थ शास्त्र के ज्ञान का पिटारा खोले बैठे थे – “यह तो इस सरकार के मुंह पर तमाचा है. इतना बढ़िया गवर्नर छोड़ के जा रहा है. सारी अर्थ व्यवस्था अस्त व्यस्त हो जाएगी. क्या होगा इस देश का ?”
एक नए उभरते पत्रकार ने पूछा “आप के हिसाब से देश की अर्थव्यवस्था अच्छी चल रही थी ?”
“जी हाँ! इसमें कोई शक नहीं.”
“मगर आप की पार्टी तो बराबर कह रही है कि वर्तमान सरकार अर्थव्यवस्था की ऐसी की तैसी कर रही है ?” 
भइय्या जी ने तरेरा “कउन गाँव से हो भाई ? नवे हो का ? हम अर्थ शास्त्र में स्नातक हूँ.”
पत्रकार ने भी भड़क के सुना दी “अच्छा ? फिर तो आप जानते होंगे inflation कैसे मापते हैं ? GDP क्या होता है. Balance of Payment क्या होता है.”
भैय्या जी घिर गए थे बोले “हमें हाई कमान से आदेश है भर्त्सना करने की सो कर रहे हैं. उन्होंने कहा ग़लत है तो ग़लत है बस! इसमें कोई बुद्धि परीक्षा की आवश्यकता नहीं. अगर सरकार कहे हाथ धो कर खाना खाओ तो हम उसका भी विरोध करेंगे. हाथ को गोबर में सान के खाना खायेंगे.”....”अरे ओ बटुकवा! जरा इनको कोने में ले जा कर शस्त्र और शास्त्र समझा.”
पुलिस अभी तक पत्रकार को ढूंढ रही है और देश अगले गवर्नर को...चाहें उससे किसी को कोई मतलब हो या न हो.
(समाचार पत्र और चैनल वालों से अनुरोध है कि इस किस्से को पढ़ कर घबराएँ नहीं और गवर्नर के मुद्दे को बराबर बेवजह हवा देते रहें) 

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