Description

जब आप अचानक कोई ऐसा काम कर जाते हैं या बात कह जाते हैं जिसका सामने वाला बुरा मान सकता है तो उसके हमला करने से पहले ही आपके पास Ooops या Ooopz कहने का license होता है। ऐसी आवाज़ निकालने के बाद सामने वाले को सिर्फ ख़ून का घूंट पी कर चुप रह जाना चाहिए। ऐसा अच्छे शिष्टाचार के अंतर्गत आता है।

इस license का प्रयोग आप कभी भी कहीं भी कर सकते हैं। बस, Ooops की आवाज़ सही समय पर निकलनी चाहिये। ज़रा सी देर काफी नुक्सान पहुँचा सकती है।

कुछ लोग पहले से ही जानबूझ के गुस्ताख़ी कर के Ooopz करने की कला जानते हैं। काफी सफल हैं वे लोग।

Ooopz blog में मैंने कुछ दूसरों के Ooopz पकड़े हैं और कुछ Ooopz खुद भी किये हैं।

आइये इन सब Ooopz का आनंद उठायें।

(इस blog पर मेरे कुल 35 व्यंग हैं. पृष्ठ के अंत में 'Newer Posts' या 'Older Posts' पर क्लिक करके आगे या पीछे के पृष्ठों पर जा सकते हैं)

Friday, 17 March 2017

शायद...

‘शायद’...तीन अक्षर का... बेमतलब का... अर्थहीन... व्यर्थ का शब्द. मगर आप सबको आगाह कर दूँ कि यह शब्द इतना भोला भी नहीं है कि मात्र अर्थहीन हो...बहुत ही ख़तरनाक है यह शब्द अगर आप इस पर ठीक से ध्यान न दें तो. Actually यह सिर्फ़ अज्ञानियों की कलई खोले बिना, उनकी अज्ञानता को छुपाते हुए, उनको बहुत बड़ा ज्ञानी जताने में सहायक है.
हमने पूछा “यह मर गया क्या ?”
वह बोले “हाँ !!!” और थोड़ा सोच के बुदबुदाए... ‘शायद’. लीजिए उनका ‘शायद’ लगते ही हम कन्फुजिया गए. अगर साफ़ साफ़ ‘न’ बोलते तो हम उसे अस्पताल ले जाते और अगर ‘हाँ’ बोलते तो उसे श्मशान ले जाते. ‘शायद’ लगा के उन्होंने हमारा धर्मसंकट बरकरार रखा. हमें उसी स्थिति में पंहुचा दिया जिसमें हम प्रश्न पूछने से पहले थे. वह तो अच्छा हुआ हमने उनका ‘शायद’ सुना और उस शब्द की अवहेलना नहीं करी - नहीं तो जिस प्रकार एक वरिष्ठ डाक्टर की अदा में उन्होंने पूर्ण विश्वास के साथ ‘हाँ’ बोला था, उनके ‘शायद’ बोलने से पहले हम उसका क्रियाकरम भी कर चुके होते.....शायद.
इस ‘शायद’ के चक्कर में बहुत झेला मैंने. ‘शायद’ लगाने की एक लम्हे की देर ने क्या से क्या कर दिया यह दिखिए चंद उदाहरणों में :
“इसमें करेंट आता है क्या ?”      “नहीं.....शायद”. उस ‘शायद’ में थोड़ी delay थी और तब तक हम खम्बे से चिपक चुके थे.
“यह कुत्ता काटता है क्या ?”       “नहीं....शायद”. उस ‘शायद’ के क्षणिक विलम्ब के कारण हम चौदह सुइयाँ लगवा के आए.
“यह शौचालय पुरुषों के लिए है क्या ?”      “हाँ...”. हम घुस गए और जब तक उनका ‘शायद’ हमें सुनाई पड़ता, उसके पहले ही महिलाओं की चीखें और चप्पलें हमारा पीछा कर रही थीं.
बेवकूफों !!! क्यों लगाते हो तुम लोग ‘शायद’ ? वह भी थोड़ा देर से ? नहीं मालूम तो कह दो नहीं मालूम. मगर तुमको तो अपने आप को हर बात में ज्ञानी जताना है, चाहें वह संडास ही क्यों न हो.
‘शायद’ का प्रयोग वास्तव में एक कला है. हर एक के बूते की बात नहीं है. जिसने यह कला सीख ली उसने अपनी नौकरी के 35-36 साल बड़ी सफ़लता से काट लिए...वह भी बिना कुछ ज्ञान बढाए हुए...और पदोन्नति के साथ. क्योंकि वे लोग जानते थे कि इस शब्द को ‘हाँ’ या ‘न’ की संधि के साथ बहुत हल्के से...बिना खनक के चपकाया जाता है जिससे उस पर किसी का ध्यान न जाए...ख़ासतौर से आपके बॉस का. बस आपका काम हो गया.
ट्रेन भोपाल का प्लेटफार्म छोड़ने ही वाली थी...हमने किस्मत आज़माई... हम दौड़े... चढ़ने से पहले चिल्ला के एक सवारी से एतिहात के तौर पर पूछ भी लिया “विदिशा रुकेगी क्या ?” बोला “हाँ... !” हम चढ़ गए. किस्मत अच्छी थी....और फिर उसने अपना वाक्य पूरा किया “....शायद”. ट्रेन पूरी रफ़्तार पकड़ चुकी थी. पता लगा अगला स्टॉप विदिशा नहीं झांसी है, जो पांच घंटे बाद आयेगा. छप्पन किलोमीटर की जगह हमको ट्रेन ने 340 कि.मी. दूर ले जा के पांच घंटे बाद पटका. रपटा तो हम खेंच देते भैय्या के गाल पर मगर उन्होंने ‘शायद’ का कवच पहन लिया था. हमारी ही किस्मत अच्छी नहीं थी (शायद).
‘शायद’ वह लाइसेंस है जो यह जताने का अधिकार देता है कि आप सब जानते हैं और ‘मालुम नहीं’ कहने से बच जाते हैं. मात्र एक शब्द जोड़ने से आप कह देते हैं - ‘मालूम भी है और नहीं भी मालूम’. सुनने वाले को दो में से एक option चुनना है...वह भी बिना लाइफ लाइन के. सामने वाला ‘हाँ’ कह रहा है या ‘न’ कह रहा है, पता ही नहीं चलता.
मैंने अपने junior से पूछा “ज़ोनल ऑफिस पूछ रहा है कि रिपोर्ट तैयार है ? क्या बोल दूं ?”
“सर ! ‘हाँ’ बोल दीजिये.”
“क्या कह रहे हो ? उनको हेड ऑफिस को जवाब देना है. रिपोर्ट में तो अभी time लगेगा.”
“सर ! ‘हाँ’ के बाद ‘शायद’ भी लगा दीजिये... safety के लिए.”
मैं ‘शायद’ शब्द का तब तक इतना स्वाद चख चुका था कि मैंने अगले दिन ही अपने secretariate से उस बन्दे को हटा कर अपना risk mitigate किया.
‘शायद’ वह शब्द है जो किसी निर्दलीय उम्मीदवार से कम नहीं. बड़े बड़े चुनावों में बड़े बड़े राजनीतिक दलों के ढोल-नगाड़ों के शोर के बीच कब कोई निर्दलीय उम्मीदवार दबे पाँव अपनी जीत निकाल लेता है...पता ही नहीं चलता. और फिर अकेला हो कर भी अपने से बड़े दलों की गठ-बंधन सरकारों का तख्ता पलटने की ताकत रखता है. ठीक वैसे ही ‘शायद’ है... ‘हाँ’ या ‘न’ के शोर के बीच चुपचाप चपक जाता है और अगर उसको आपने पूरी इज्ज़त नहीं बख्शी तो अर्थ का अनर्थ बनाने की ताक़त रखता है.
मेरे मौजूदगी में मिश्रा जी ने तीन बार liaison officer से पूछा था “बड़े साहेब की wife को लेने गाड़ी एअरपोर्ट गई ?” और उसने तीन बार पूरे जोश से बोला था “हाँ सर... !!!” और तीनों बार हल्के से प्रत्याय (suffix) भी चपका दिया था - ‘...शायद’. नतीजा यह कि मेमसाब को लेने गाड़ी नहीं पहुंची और मिश्रा जी ने उस ‘शायद’ का ख़ामियाज़ा भी भुगता. आनन-फानन में उनका स्थानान्तरण हो गया. साढ़े चार साल तक बेचारे लेह-लद्दाख़ की फ़ोटो फेसबुक और whatsapp पर डालते रहे.

इसलिए कह रहा हूँ कि न सिर्फ़ ‘शायद’ से बल्कि ‘शायद’ बोलने वालों से भी सावधान रहें नहीं तो Ooopz कहने लायक भी नहीं रहेंगे.

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