आपने ज़रूर देखा होगा वह
बेगुनाह बैग जिसे लोग पीटते हैं...लात मारते हैं...घूसे मारते हैं और मारते मारते कभी
कभी जोश में गालियाँ तक बक देते हैं. यानि पूरा गुबार उस पर निकालते हैं. सही पकड़े
हैं आप...Stress Buster...यही कहते हैं उसे...खुन्दकनाशक यंत्र. एक समय था जब बैंक
खुन्दकनाशक यंत्र हुआ करते थे. वह वक्त था जब न सिर्फ़ बैंकिंग का बल्कि दुनिया जहान का गुस्सा हम पर
उतारा जाता था. ग्राहक के घर में नल में पानी नहीं...बिजली नहीं...बीबी ने खरी
खोटी सुनाई ...या ट्रैफिक जाम...इन सब की भंड़ास से उबले हुए सीधे बैंक में घुसे और
भड़ से बैंक वालों पर उड़ेल दी...क्योंकि और कहीं कोई सुनवाई न थी. हाँ ! यह ज़रूर था
कि भंड़ास निकालते समय बिजली, पानी, बीबी का ज़िक्र भी नहीं होता था. हमारे ही किसी
न किसी काम में गलती निकाल के हमें ठोकते थे. हम सिर्फ़ लात खाने के लिए
बने थे...कभी कभी बावजह और ज़्यादातर बेवजह. बैंक join करते ही गुरुकुल ने समझा
दिया था ‘बेटा ! तुझे शांत रहना है क्योंकि तुझे इस तुड़ाई करवाने के लिए ही पगार मिलती है.’
आज समय और बैंकिंग दोनों बदल गए हैं. बैंक में
काम है तो हिंदी के लिए 1 दबाएँ...फिर 3 दबाएँ...फिर 7 दबाएँ...फिर 5 दबाएँ...फिर 9
दबाएँ...और दबाने के आदेशों का तब तक पालन करें जब तक आपकी भड़ांस न दब जाए. बहुत
से बहुत आपकी भड़ांस का कारण बदल जाएगा जो आप फ़ोन पर ही निकाल सकते हैं. बैंक वाले का
face to face encounter करने का आपका अरमान अरमान ही रह जायेगा.
और यदि कहीं फ़ोन लग गया तो अधिकतर ऐसा व्यक्ति
उठाएगा जो किराए का है...बैंक का नहीं ...यानि outsourced...यानि बेगानी शादी का
दीवाना – श्रीमान अब्दुल्ला. शादी से उसका कोई सरोकार नहीं पर उसकी दीवानगी से पता
ही नहीं चलता...जम के नाचता-कूदता है. इसको कहते हैं outsourced. जब बैंक से ठेका
मिला तो बैंकिंग के सवाल जवाब कर लेगा...मोबाइल फ़ोन कम्पनी से ठेका हो गया तो वह
उसमें दक्ष. आता जाता उसे कुछ भी नहीं है. बस उसके सामने 20-25 अक्सर पूछे गए
प्रश्नोत्तरों की सूची होती है (FAQs) उसी में से कोई एक उत्तर आपके मुंह पर मार
देगा, चाहें प्रश्न आपका कुछ भी हो. आप सही जवाब पाने के लिए सर फोड़ते रह जाएँगे.
उसको गालियाँ देना बेकार क्योंकि उसको पगार वही खाने की मिलती है. उसकी विनम्रता आपकी
खुंदक में घी का काम करती है.
पहले अच्छा खासा हम औसतन 4-5 घंटे में ड्राफ्ट
बना कर दे देते थे. पब्लिक ने बहुत हल्ला काटा. RBI ने time norms बना दिए जो हर
शाखा में लगा दिए गए... ड्राफ्ट 1 घंटे में. आज बैंकों ने सीना ठोक के नोटिस लगाया
है कि ड्राफ्ट आपके पते पर तीसरे दिन पहुँचेगा. लो कल्लो बात time norms की. मगर
अब ?...कितना सन्नाटा है भाई ? कोई गिला-शिकवा भी नहीं ?
वह ज़माना था जब छोटी और मध्यम साइज़ की शाखाओं
में ग्राहक से स्वतः ही एक व्यक्तिगत रिश्ता बन जाता था. किसके बच्चे क्या करते
हैं...किसके घर में कौन बीमार हो गया...कौन छुट्टियों में घूम के आया है...ब्रांच
वालों को सब मालूम रहता था. यह सब होता आज भी है मगर Relationship Officer के
माध्यम से. बहुत ख़तरनाक breed होती है यह. शाखा में अगर bomb squad के sniffer dog
की तरह कोई घूमता दिख जाए तो सतर्क हो जाएँ...यह आपको सूंघता हुआ आएगा और आपसे
रिश्ता बनाने का नाटक करके आप को कुछ टिपा कर ही दम लेगा. आप Honda Citi से
उतरेंगे तो Mutual Funds भिड़ा देगा और स्कूटर से जाएँगे तो बीमा पालिसी चपका देगा.
Technology का कमाल कि शाखा में घुसते ही आपकी
कुंडली ब्रांच के मॉनिटर पर आ जाती है और अन्दर ही अन्दर Relationship Officer तक दो
शब्दों में पहुंचा दी जाती है – “तेरा शिकार”. फिर तो वह आपके पीछे ऐसा पड़ जाएगा
कि आप असली काम भूल जाएँगे और घर आ कर सोचते ही रह जाएँगे कि आप बैंक में घुसे किस
काम से थे. ...ले आया ज़ालिम बनारस का ज़र्दा जबकि मंगाया क्या था ?...ज़ालिम आप
नहीं...ज़ालिम वह sniffer है जिसके चक्कर में आप भूल ही गए कि बैंक में किस काम से
गए थे.
हाल ही में मिश्रा जी ने अपने ड्राईवर को बैंक
के हॉल में इंतज़ार करने को बिठाया और ब्रांच मेनेजर के पास अपना काम निबटाने चले
गए. यकीन मानिए जब बीस मिनट बाद लौट के आए तो उनके ड्राईवर के हाथ में 50,000 रुपए की बीमा पालिसी थी. Sniffer उस ग़रीब
का भी शिकार कर चुका था.
‘हम तो गए बाज़ार में लेने को आलू, आलू-वालू कुछ
न मिला पीछे पड़ा भालू’. वह लोग जो हसरत जयपुरी साहब की इस चेतावनी को समझ गए और बैंक
में नित्य जाया करते हैं वह इस भालू को पहचानते हैं...समझदार हैं...उसे दूर से
देखते ही कट लेते हैं.
आजकल भालू एक संक्रामक रोग से ग्रसित हैं - Cross
Sell...यानि असली माल की ऐसी की तैसी ...उसके अलावा वाला बेचो. अगर ब्लाउज़ पीस की दुकानवाला
आवाज़ लगाए “बहन जी, लौकी एक दम ताज़ी है. दो किलो तौल दूँ ?” समझ जाइये कि उस
दुकानदार में ‘अलावा बेचो’ के कीटाणु प्रवेश कर चुके हैं.
अलावा बेचो (Cross sell) के चक्कर में बैंकों का
माहौल ही बदल गया है. केले के ठेले पर सैंडल भी बिक रहे हैं...पेटीकोट बेचने वाला मीठे जामुन की
टेर भी लगा रहा है...डाक्टर के यहाँ खाद भी मिल रही है. बैंक का ग्राहक पूर्ण रूपेर्ण
विमूढ़ है. वह कह रहा है “माँ कसम !!! अब बैंक वालों को कभी बेवजह गाली नहीं दूँगा.
प्लीज़ !!! लौटा दो वह पुरानी वाली सस्ती-सरल-आसान बैंकिंग.” मगर यह Top Management
है कि मानता ही नहीं और कहता है “माँ कसम !!! बैंकिंग के अलावा हर चीज़ चेपूंगा”.
(बैंकों के Top
Management को समझ आए तो ठीक वरना Ooopz...वह दिन दूर नहीं जब...वह जो लगाते थे दुकान
समोसों की अब लिफ़ाफ़े बेचते हैं.)
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