आज़ादी के सत्तर साल कुछ
ज़्यादा ही जश्न के साथ मना लिए गए. जैसे जैसे हम सन सैंतालिस से दूर होते जा रहे
हैं, समय के साथ ग़ुलामी के घाव भी भुलाते जा रहे हैं. सही है - Time is the best healer. जिनको घाव लगे थे
ज़्यादातर वे लोग तो हमारे बीच अब रहे नहीं और
अब जो पीढियां आ चुकी हैं उन्होंने कभी ग़ुलामी चखी नहीं. सो उनके लिए आज़ादी की
परिभाषा ही अलग है. आज जो फर्स्ट क्लास के डब्बे में बिना टिकट चलना अपना अधिकार
समझते हैं, नहीं जानते कि ग़ुलामी में उसी डब्बे से लात मार कर हमें बाहर फेंका
जाता था.
आज की पीढियों को आज़ादी
की इतनी लत पड़ चुकी है कि उन्हें अब कोई बंधन ग़ुलाम नहीं बना सकता है. हेलमेट नहीं
लगाने पर, टोके जाने पर, ये पुलिस वाले को थप्पड़ रसीद देते हैं. इनके लिए तो क़ानून
के बंधन का मतलब ही ग़ुलामी है. टैक्स भरना एक ग़ुलामी है. ट्रैफिक के नियमों का
पालन एक ग़ुलामी है. बाप और बेटे दोनों नई पीढ़ी से हैं सो बाप अपने बेटे को हड़काता
है ‘अबे बेवकूफ़ !!! इतनी सी चोरी भी नहीं कर सका ?’ भांति भांति की बेईमानी के
सलाहकारी धंधे बन गए हैं. गरज यह कि सरकार जो बोले उसका उल्टा करो, यही हमारे लिए
आज़ादी का मतलब है.
‘दादा ! अच्छा हुआ आपने
ये दिन नहीं देखे. आप कहते तुम मुझे खून दो - मैं तुम्हें आज़ादी दूंगा.’ तो कुछ
लोग कहते ‘क्यों दूँ मैं खून ? यह हमारा पर्सनल खून है. पईले मुझे आज़ादी दिखाओ.
अरे हम आधार पर अंगूठा तक नहीं दिया और तूम हमको खून मांगता ? यह तो बहुत बरा
साजिश है. हम सुप्रीम कोर्ट तक लरेगा परन्तु अपना खून काए कू देंगा ? तुम जरूर
हमारा खून ब्लड बैंक में बेच के धंधा करेगी. हम खून देगा तो तुमको हमारा ब्लड
ग्रुप मालूम परेगा. आजादी के नाम पे हमारी गोपनीयता पर हमला है यह.’
हमारी समझ में न आया. खुलेआम
सड़क पर धार मारना आज़ादी की परिभाषा में आता है मगर आधार से जुड़ने में हमें तकलीफ़
है. धार allowed पर आधार not allowed ?
तकलीफ़ बताते हैं कि बैंक
खातों और मोबाइल फ़ोन का आधार कार्ड से जुड़ना उनकी गोपनीयता पर गंभीर आघात है.
खाते और फ़ोन के लिए आप अपनी
पहचान और पते के सबूत वैसे ही अपने हस्ताक्षर के साथ देते आ रहे हैं तो अब उसी बात
की पुष्टि के लिए अंगूठा लगाने में गोपनीयता कैसे खतरे में आ गई ?
‘चुप रहो. तुम बैंक
वाले हमेसा अनपर आदमी का ही अंगूठा लगवाते हो. फिर आधार पर हमारा अंगूठा लगाने से
सब को पता चलेगा कि हम...?’
लो जी लो ! अनपढ़ता की
पहचान किसी अंगूठे की मोहताज नहीं है. वह तो आपके चेहरे से ख़ुद ही टपक टपक के गिर
रही है. प्रति सुबह, अत्यंत व्यक्तिगत समस्या का सार्वजनिक समाधान करने में कोई
गोपनीयता का हनन नहीं मगर अंगूठे में है. सेंसर बोर्ड कृपया नोट करे और अंगूठे के
चित्रों पर भी कैंची चलाएँ.
उधर सुप्रीम कोर्ट के
जज परेशान हैं. बरसों से कितने बेक़सूर सलाखों के पीछे न्याय की प्रतीक्षा में सूख
रहे हैं और इधर आधार का मुक़दमा लाइन तोड़ कर सबसे आगे आ गया. इसे कहते हैं
नक्कारखाने में तूती का दम.
बहाना चाहें कुछ भी हो
लब्बो लुआब यह कि क्योंकि सरकार ने कहा है इसलिए हम उसका पालन नहीं करेंगे. कल्लो
जो करना है.
सरकार ने कहा
राष्ट्रगान गाओ. कुछ लोग भड़क गए. 4 मिनट 52 सेकंड के लिए वे ‘मुन्नी बदनाम हुई
डार्लिंग तेरे लिए’ पर थिरक सकते हैं लेकिन जन गन मन के लिए मात्र 52 सेकंड में उनकी
टाँगें कांपने लगती हैं. इस के तर्क-वितर्क में अखबारों के पन्ने भर गए और चैनल का
TRP बढ़ गया.
वन्दे मातरम को लेकर एक साहब ने सारे
भारतवासियों का गुस्सा हम पर उतारा. बोले - ‘हम भारतवासियों में एक बहुत बड़ी कमी
है. हर चीज़ को हम माता बोल देते हैं...क्या नदी, क्या गाय और क्या भारत. अब सरकार
भी वही राग अलाप रही है. अरे सब के सब माता कैसे हो सकते हैं ? मुझे ही देख लो. एक
ही माँ है...सत्तर साल की. हमने तो उसे भी Old Age Home में जमा कर दिया है और तुम
लोग सत्तर साल की भारत माता को वन्दे मातरम् कर रहे हो. इतना emotional क्यों हो
रहे हो भाई ?’
तुम लोग जो इतना बड़ा मुंह
ले कर घूम रहे हो और हर सांस में आग उगल रहे हो तो उस आज़ादी को भी हर सांस में
सलाम कर लो जिसकी वजह से वह बड़ा मुंह अभी तक तोड़ा नहीं गया. शायद तुम्हारे दिलों
में देश के लिए प्रेम और देश के क़ानून के लिए कुछ इज्ज़त उमड़ आए.
Wonderful Analogies.... Hats Off!
ReplyDelete"लेकिन जन गन मन के लिए मात्र 52 सेकंड में उनकी टाँगें कांपने लगती हैं" bahot khoob... Sateek chitran Sir
ReplyDeleteIs Desh me criminals ki azadi ke liye log bahut pareshan Hain. Supreme Court bhi bahut active hai. Sarif aadami ke liye hi sab kayada kanun hai. Hamare ek Mitra up mein criminals ke encounters ko lekar bahut chintit Hain.
ReplyDeleteSarif aadami ki suraksha ke liye nahin.