Description

जब आप अचानक कोई ऐसा काम कर जाते हैं या बात कह जाते हैं जिसका सामने वाला बुरा मान सकता है तो उसके हमला करने से पहले ही आपके पास Ooops या Ooopz कहने का license होता है। ऐसी आवाज़ निकालने के बाद सामने वाले को सिर्फ ख़ून का घूंट पी कर चुप रह जाना चाहिए। ऐसा अच्छे शिष्टाचार के अंतर्गत आता है।

इस license का प्रयोग आप कभी भी कहीं भी कर सकते हैं। बस, Ooops की आवाज़ सही समय पर निकलनी चाहिये। ज़रा सी देर काफी नुक्सान पहुँचा सकती है।

कुछ लोग पहले से ही जानबूझ के गुस्ताख़ी कर के Ooopz करने की कला जानते हैं। काफी सफल हैं वे लोग।

Ooopz blog में मैंने कुछ दूसरों के Ooopz पकड़े हैं और कुछ Ooopz खुद भी किये हैं।

आइये इन सब Ooopz का आनंद उठायें।

(इस blog पर मेरे कुल 35 व्यंग हैं. पृष्ठ के अंत में 'Newer Posts' या 'Older Posts' पर क्लिक करके आगे या पीछे के पृष्ठों पर जा सकते हैं)

Sunday, 25 February 2018

पतली गली के मुसाफ़िर

नीरव मोदी का मामला तो ऐसा हो गया मानो देश भर में कोई नया त्यौहार आ गया. हर जुबान पर, सुबह और शाम, बस एक ही नाम. सब धर्म के लोग एक हो गए...देश एक हो गया. सब मिल कर किसी न किसी को गाली देने में लग गए – कोई सारे बैंकों को, तो कोई केवल सरकारी बैंकों को, तो कोई रिज़र्व बैंक को और कोई ऑडिटर को (यानि नीरव मोदी को छोड़ कर बाक़ी सब को).

खैर...यह तो हमारी जनता की पुरानी आदत है. चोर को भूल जाएँगे और चौकीदार की तुड़ाई करेंगे या थाने पर धरना देंगे. मरने वाला बिना हेलमेट के मरेगा लेकिन बड़ी गाड़ी वाले को पीट देंगे. बुढ़ऊ दारु पी पी कर लिवर खोखला कर के मरेगा मगर घर वाले डाक्टर को ठोक देंगे.

नीरव-मोदी-पर्व मनाने के लिए जिन लोगों को चेक भरने की भी तमीज नहीं वे भी बैंकिंग विशेषज्ञ हो गए. ट्विटर, WhatsApp और फेसबुक में अपनी डेढ़ आने की बुद्धि छापने लगे. यहाँ 37 साल बैंक में कलम घिसने के बाद भी नीरव काण्ड पर पूर्ण खुलासा नहीं मिल रहा और भाई लिख रहे हैं कि “जानिए - नीरव मोदी का असली खेल”.

सरकार और विपक्ष आदा-पादा खेलने में लगे हैं...यह तय करने के लिए कि इस बदबू का ज़िम्मेवार कौन है.

मगर इन सबके बीच एक छोटा सा समाचार सब से नज़र अंदाज़ हो गया. “मूडी ने कहा है कि वह पंजाब नेशनल बैंक की रेटिंग गिरा रहा है”. वाह रे पतली गली के मुसाफ़िर ! जब बंदा खड्डे में गिर गया तो बता रहे हो भाई साहब! यहाँ गड्ढा था. सब कुछ हो जाने के बाद अगर तुम रेटिंग बदल कर पतली गली से निकल लिए तो तुम्हारी पहली रेटिंग का फ़ायदा क्या ? इतने सब काण्ड के बाद तो हमारे लल्लू धोबी का लल्लू सा गधा भी रेटिंग बदल देगा. इसमें तुम्हारी क्या क़ाबलियत और तुमको इस नाक़ाबलियत का करोड़ों क्यों दें ?

मुझे आज तक ये रेटिंग एजेंसी का काम समझ में नहीं आया. इनकी रेटिंग के भरोसे बड़े बड़े निवेशों और ऋणों के निर्णय लिए जाते हैं और अचानक एक सवेरे, नेताओं के वादे की तरह, पलटी मार जाते हैं. रेटिंग बदल देते हैं. अब लो...कल्लो जो करना है. भैंस तो पानी में गोते खा गई.

भाई, तुम लोग कर क्या रहे थे रेटिंग देते वक्त ? इतने सारे गड्ढे, जो अब सामने आ रहे हैं, अगर तुमको नहीं दिखे तो तुम्हारी ज़रुरत ही क्या ? कॉन्ट्रैक्ट लेने से पहले तुम पावर-पॉइंट दिखा कर उल्लू बनाते हो...फिर रेटिंग देते समय दोबारा पावर-पॉइंट दिखा कर उल्लू बनाते हो और फिर...टंटा होने के बाद तीसरा पॉवर पॉइंट.

(मैं हमेशा कहता हूँ – अगर अनपढ़-गंवार को उल्लू बनाना है तो पॉवर चाहिए और पढ़े लिखों को उल्लू बनाना है तो पावर-पॉइंट चाहिए).

हमारे गाँव के ठाकुर चाचा आज तक अपने नऊए को गाली देते हैं. न्योता देने के अलावा नऊआ अगल बगल के गाँव में रिश्ते भी कराता था. घर घर जाता था तो मालूम था किसकी लड़की या लड़का शादी योग्य है और रेटिंग के हिसाब से बताता था कि वह रिश्ता कितना उपयुक्त है. ठाकुर चाचा की शादी के लिए भी उसी ने रिश्ता बताया था और चाची के गुणों की भूरि भूरि प्रशंसा करके बढ़िया रेटिंग दे कर चाचा को चाची चेंप दी थी. शादी की पहली रात ही जब ठाकुर चाचा ने पहली बार चाची का घूंघट उठाया तो पाया कि चाची के सामने के दो दांत मुंह के अंदर फ़िट नहीं बैठे थे इस वजह से वे बाहर ही रह गए थे.

बस फिर क्या था लाठी को तेल पिला कर चाचा नऊए को ढूँढने निकल पड़े. नऊए ने बहुत समझाया कि चाची हमेशा घूंघट में रहती थी तो अंदर की बात उसे कैसे पता चलती ? उसने चाची की रेटिंग बदलने का प्रस्ताव रखा तो जवाब में चाचा उसकी खोपड़ी चिटका चुके थे. अस्पताल से निकलने के बाद नऊआ सिर्फ़ न्यौता देता ही नज़र आया. रेटिंग देना छोड़ दिया. समझदार था वह.

तो भाई लोग, तुम्हारे इस रेटिंग के धंधे ने सिर्फ़ चाचा की जिंदगी ही बर्बाद नहीं करी...बहुतों की करी है और इस बात का गवाह है इतिहास और PNB का ताज़ा केस. रेटिंग एजेंसियों की ठुस्सियत के बाद भी रेटिंग के कानून की एहमियत में कोई कमी नहीं है और न ही रेटिंग एजेंसियों की ओर किसी का ध्यान जाता है. रेटिंग आती है, उसके आधार पर बड़े बड़े निर्णय होते हैं. रेटिंग ठुस्स हो जाती है तो नई रेटिंग आ जाती है. और हम एक बार बेवक़ूफ़ बन कर दोबारा बेवक़ूफ़ बनने के लिए कतार में लग जाते हैं.

ग़ज़ब की रेटिंग कला है तुम लोगों की – मौत तुम्हारे सिर पर मंडराए और तुमको भान ही नहीं? 'मस्त' रेटिंग का सर्टिफिकेट पकड़ा देते हो. और जब Dead on Arrival की घोषणा होती है तो रेटिंग बदल देते हो. तुमने बकरा होने का सर्टिफिकेट दिया. भाई ने बिरयानी बना के खा ली और बाद में तुमने सर्टिफिकेट बदल दिया - बोले ये बकरा नहीं कुत्ता था. अगर बकरे और कुत्ते का फ़र्क नहीं मालूम तो इस धंधे से कट लो भैय्या.

अगर नऊआ बुरा न माने तो एक गुर की बात कहूं...तुममें और नऊए में कोई फ़र्क नहीं. पांच किलो आटा और 1 किलो देसी घी मिलते ही वह किसी को भी मधुबाला वाली रेटिंग देकर उल्लू बनाने का धंधा करता था. अब तो हमें भी शक होने लगा है कि तुम्हारा भी कुछ आटे-घी का चक्कर है. 

आज नीरव के पावन पर्व पर इसे धमकी ही समझना कि जिस दिन लोग तुम्हारी रेटिंग करने लगेंगे, उस दिन तुम्हें आटे-घी का भाव पता चल जायेगा. एक बार चाची को रेटिंग दे दी तो उसे बदलने की सोचना भी नहीं. वरना तुम्हारी खोपड़ी होगी और जनता की लाठी. उस दिन से या तो तुम क़ायदे की रेटिंग करने लगोगे या शायद रेटिंग का धंधा छोड़ कर कुछ समझदारी का खोंचा लगाने लगोगे. 

4 comments:

Thank you for the encouragement.