8 बजने से पहले ही लोग टीवी से चिपक चुके थे. पता नहीं आज
क्या बोलेंगे ? थाली कटोरी घंटी घंटा बैंगन लौकी...और कुछ ‘वगैरह’ भी इकट्ठे कर के
अगल बगल चपका के रख लिए थे. जिसका भी आवाहन करेंगे वह तैय्यार...पलक झपकते...बस
प्रभु lockdown खोलने का ऐलान कर दो.
बहुतों को इंतजार है इसका ‘अब बहुत हो गया...इस बंद घर में नहीं रहा जा रहा
अब. घुटन ही घुटन. इस घुटन में घुट घुट के मरने से अच्छा, बाहर खुली हवा में कोरोना से मरें.’ कह तो दिया जोश में आ
कर...पर बाहर निकलने में...वह क्या कहते हैं...फूँक सरक रही थी सबकी.
वैसे हालत तो बहुतों की ऐसी ही थी. खुल भी गया तो बाहर निकलने का माद्दा नहीं
है. ब्लड ग्रुप भी पूछो तो B बोल के चुप हो
जाते हैं. ‘Positive’ का उच्चारण करने
में ज़ुबान लड़खड़ा रही है. ऐसे में क्या बाहर निकलेंगे ?
कोई जान के डर को ले कर रो रहा है. कोई धंधे को ले कर रो रहा है. किसी की
नौकरी अब या तब हो रही है. अगर किसी को कोई और ग़म नहीं सूझ रहा है तो वह पूरे देश
की अर्थव्यवस्था को ले कर परेशान है. मुंह के बाहर मास्क है और मुंह के अंदर
कलेजा...बिलकुल हलक पे. कब तक चलेगा ऐसे ? चलेगा भी या नहीं ? सब ख़त्म होने जा रहा है क्या ?
प्लेट में चखना डालते हुए एक नज़र बोतल पर डाली. आधी भरी थी...नहीं आधी खाली थी...Total कनफूजन. समझ में नहीं आ रहा पहले बोतल खलास होगी या दुनिया
? भला हो बोतल का जो दुनिया घूमती लग रही है नहीं तो सवेरे से थोड़ी थोड़ी देर में
झाँक झाँक के देख रहे थे सूरज कुछ सरका या धरती थम गई है ?
घबराहट का आलम यह कि कोई हलो भी बोलता है तो लगता है अलविदा कह रहा है. आँखें
इतना धुंधला गई हैं कि WhatsApp पर HBD भी RIP नज़र आता है. बचपन
में मास्टर साहेब से पूछते थे ‘सवेरा होने को पौ फटना क्यों कहते हैं ?’ वह तो लाख
कोशिश बावजूद न समझा पाए पर कोविड गुरु ने समझा दिया. सवेरे सवेरे अखबार उठाओ तो “कितने
और मरे” से दिन शुरू होता है. चिर्र्र्रर्र्र्र...फटाक. सवेरा हो गया. फट गई
भैय्या...पौ फट गई और अच्छी तरह से फट गई. अब ध्यान से देखो सारे आंकड़े अख़बार में ‘कितने मरे, कितने बचे और कितने मरने
की तैय्यारी में हैं.’ दुनिया में कितने मरे, देश में कितने मरे, आपके राज्य में, शहर में, मोहल्ले में, नुक्कड़ से 30 फ़िट दूर...सारा ब्यौरा है. इस पूरे नक़्शे में आप
किधर बैठे दिख रहे हो ? इस बात से हर सुबह चिर्र्रर्र्र्रर्र्र...फटाक की इन्तेहा
कैलकुलेट कर लो और पौ का धमाका कितना दमदार है, वैसे ही तय कर लो जैसे दिवाली पर
सुतली बम का करते हो.
टीवी चालू हो गया. 8 बज गए....8.05...8.10...8.12...8.13... गर्व और
आत्मनिर्भर का विषय चल रहा था. स्क्रीन के बीच में मोदी जी और चारों ओर चैनल वालों
के तरह तरह के विज्ञापन. ज़ाहिर सी बात थी...विज्ञापनों में देशवासियों के लिए
सन्देश और चैनल के लिए कमाई की कमाई. साबुन, सेनेटाईज़र, मास्क, डेटोल, दस्ताने, पी.पी.ई.
अचानक एक चौंका देने वाला विज्ञापन आया – एक फार्मा कंपनी...सभी फार्मा वाले
कोरोना से बचने की दवाई बेच रहे हैं. मगर चौंकाने वाली बात थी कि यह कंपनी ‘गिरते
बालों का इलाज’ बेच रही थी.
यह कउन गाँव से है भाई ? यहाँ गंजे की जान के लाले पड़े हैं और भाई बाल उगाने
की दवा बेच रहे हैं. लाखों रूपये
चैनल को दे रहे हैं इस इश्तेहार का, वह भी इस माहौल में ? कौन गंजा इस माहौल में
जान की छोड़ के बाल की चिंता करेगा ? बाल हैं तो जहान है...ऐसा तो कभी सुना नहीं.
मैंने दो चार टकले दोस्तों को फ़ोन लगाया – ‘बोल, जान चाहिए या खोपड़ी पर बाल ?’
‘अरे यह कैसा either or survivor जैसा सवाल कर
रहा है ? देसी लगा रहा है क्या ? किधर मिली ?’ सब का एक ही सवाल. लेकिन इतने दिनों
बाद उनकी आवाज़ में मायूसी की जगह कुछ चमक थी...एक उम्मीद थी. शायद दारु की ?
और फिर थोड़ी देर बाद सारे टकले दोस्तों की मिलीजुली आवाज़ ने स्पष्ट किया “यार, सही सवाल किया तूने. जाना ही है तो कोई अरमान छोड़ के क्यों
जाएँ ? खोपड़ी पर बाल न सही मगर दिल में अरमान तो हैं ही. आख़िरी फ़ोटो में खोपड़ी पे
बाल दिखें तो क्या मस्त लगेंगे. जो भी बाक़ी के दिन कोरोना के साथ कटने हैं क्यों न
बालों की उम्मीद में काटे जाएँ ? हर नया दिन अखबार में लाशें गिनने से तो अच्छा कि
शीशे में खोपड़ी पर नए उगे बाल गिने जाएं. जिनके हैं...वह कटवाने के इंतज़ार में जी
रहे हैं...तो जिनके नहीं हैं वह उगने के इंतज़ार में क्यों नहीं जी सकते ? तूने जान
डाल दी इस बेजान जिंदगी में. थैंक्यू.”
और मैं उस फार्मा कम्पनी को तहे दिल से शुक्रिया अदा कर रहा था कि इतने दह्शती
माहौल में भी वह लाखों रूपये खर्च करके कितने लोगों को जीने की चाह दे रही है.
शायद यही है कोरोना से लड़ने का सफ़ल तरीका...BE POSITIVE...कोरोना positive कुछ नहीं कर पाएगा.
🙏🙏 वगैरह बचा है कि सब ख़तम ?
ReplyDeleteVery nice. I enjoyed thoroughly .please keep writing such things which is not only humorous but also giving a motivation to people in this uncertain and fearful Covid-19 environment .
ReplyDeletePositive thinking, anyway this seems to be new normal...
ReplyDeleteHumorous writing. अपनी खोपड़ी के लिए सटीक बैठता है.
ReplyDeleteGreat satire on present scenario on Corona, ourvsituation, activities by leaders, our surrounding environment and opportunist available around us. Take care n be safe.
ReplyDeleteYour blog lightens the mood in these horible times .
ReplyDeleteWhat a presentation, its very good explanation of today's circumstances and the way you have written is marvellous. It means you have experience to convert your feelings in words. We wish you are gem in writing also like behaviour. Please continue and we hope to hear from you soon!!!!
ReplyDeleteEnjoyed reading your blog!
ReplyDeleteVery humorous!!
Ha Ha!!
घबराहट का आलम यह कि कोई हलो भी बोलता है तो लगता है अलविदा कह रहा है.
आजकल के 'कोरोना-दूषित' हालात को देखते हुए...
साहिर के चंद पंक्तियाँ याद आगयी..
"जिस सुबह की खातिर जुग-जुग से, हम सब मर-मर के जीते हैं.."
Keep writing.
Thanks to all of you for this encouragement.
ReplyDeletePositivism is a vibe and you're spreading it right cause taking it light is the only way of life 🌿
ReplyDeletevery nice wonderful and mast comedy..😂😂
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