मन तो नहीं हो रहा तुमको “आदरणीय” कहने का लेकिन फिर भी एक पिटा हुआ
दस्तूर तो निभाना ही होगा...
आदरणीय मीडिया जी,
धन्य है तू. इससे पहले भी मैं कई बार तुम्हारे x-ray, सोनोग्राफी वगैरह
की रिपोर्ट पर चंद पंक्तियाँ लिख चुका हूँ मगर जब भी तुम्हारा CAT-Scan किया गया
तो तुम्हारे अन्दर इंसान का दिमाग पाया ही नहीं गया...गंदगी में जीने वाले उस
जानवर का दिमाग है जो हर जगह सिर्फ कचरा ढूंढते हैं और वही दिमाग लेके तुम सारे
देश में गंदगी फैला रहे हो (उस जानवर से क्षमा याचना सहित). छोटी से छोटी बात को
भी...यानि चड्डी को पजामा बता कर तुम कई कई दिन अपने चैनल पर और अख़बारों में बेचते
हो.
किसी भी घटना को दुर्घटना बना देते हो. सीमा के जांबाज़ सिपाही जब
हमारी सुरक्षा करते हैं तो उसमें भी अपने दिमाग के कचरे को उछाल उछाल कर पूरे देश
में फैलाते हो.
भैय्या ! हम तो आम आदमी हैं (ओये...’पार्टी’ नहीं बोला मैंने...सिर्फ
‘आम आदमी’). और अधिकतर आम आदमी सीधा सादा, कम ज्ञानी होता है. तुम जो दिखाते हो,
सुनाते हो, पढ़ाते हो हम वही देख लेते हैं, सुन लेते हैं, पढ़ लेते हैं और समझ लेते
हैं. हमारा ज्ञान वहीँ तक सीमित है. तुम भड़काते हो तो हम सब भड़क भी जाते हैं...और
चंद मिनिटों में ही भड़क जाते हैं. तुम जिसको निशाना साध लो हम सब उसको गाली भी
देने लगते हैं...बिना अपना दिमाग़ लगाए कि गाली सही निशाने पे जा रही है या नहीं.
उस चक्कर में असली निशाना बचा रहता है और ऐश करता है.
अब 500/1000 के नोटों का ही ज़िक्र ले लो. पिछले 4 दिनों से तुम्हारे
सिखाये हुए पपलू पूरे देश में घूम रहे हैं और सिर्फ यह दिखा रहे हैं कि जनता को
कितना कष्ट हुआ है. समा कुछ ऐसा है मानो कह रहे हों - “गौर से देखिये इस डाक्टर
को...यह मरीजों को कड़वी दवाइयां देता है...उनका पेट चीर देता है...उनकी पिछाड़ी में
सुई घुसेड़ देता है”. भाई वाह ! तुम को कड़वाहट, चीरा और सुई का दर्द दिखाई दिया पर
जो इलाज हुआ उसका कोई ज़िक्र ही नहीं ?
बैंक के बाहर, लाइन में खड़े बंदे ने अपने आंसू दिखाए कि उसकी बेटी की
शादी है और उसके पास सिर्फ 500/1000 के ही नोट हैं. होटल वाला भी नकद मांग रहा
है...कैटरिंग वाला भी नकद मांग रहा है...बैंड-बाजा वाला भी और बस उसके आंसुओं में अपनी दहाड़ जोड़ कर जो तुमने दृश्यांकन
किया उससे करोड़ों के आंसू निकल आए और बाकी करोड़ों का खून खौल उठा...कुछ ने सरकार
को गाली दी और जो ज़्यादा समझदार थे उन्होंने जिगर मां बड़ी आग सुलगा कर बैंक की
कुर्सी मेज़ तोड़ दिए. तुम्हारा चैनल और बिकने लगा. तुम्हारी तो निकल पड़ी. तुमने आंसुओं
की कुछ और कहानियां तड़का लगा कर दिखा दी...ले और ले बेटा...इसे चबा के पब्लिक में
थूक दे.
एक बार भी तुमने कोशिश नहीं की कि उन होटल वालों का, कैटरिंग वालों
का या बैंड-बाजा वालों का इंटरव्यू दिखाते और उन सब का पर्दाफ़ाश करते जो चेक से, मतलब
बिना cash के, भुगतान लेने को मना कर रहे हैं. जो टैक्स की चोरी कर रहे हैं जिनकी
वजह से आज बैंकों के आगे लोगों की भीड़ लगी है कैश निकालने के लिए. और तो और...जिनकी
वजह से ये कानून बना. उनसे पूछो कि वह चेक से भुगतान क्यों नहीं ले रहे ?
उस चार्टर्ड अकाउंटेंट के बारे में बताओ जो अपने ग्राहक को बराबर
टैक्स की चोरी के बारे में गुर देता रहा मगर आज हाथ झाड़ के खड़ा हो गया और बोला “मैं
ख़ुद अपने बोरे छुपाने का तोड़ ढूंढ रहा हूँ आपको क्या बताऊँ ?”
मैंने एक डाक्टर से पूछा कि आप अगर मरीज़ से 4 नोट 500 के ले भी लेते
तो कल बैंक में जमा कर देते. उस गरीब की जान बच जाती. उन्होंने बड़ी हिक़ारत भरी
निगाह से मुझे देखा “बेवकूफ़ नासमझ ! घर में बोरों में भरा पड़ा है उसे ही ठिकाने
नहीं लगा पा रहा...तुम कहते हो कि 4 नोट और लेके बैठ जाओ.” काश ऐसे लोगों का
इंटरव्यू चैनल पर आता.
Sorry...आवेश में मैं तो भूल ही गया. काला धन वाले तो तुम में से कई
चैनल वालों के मौसा की औलाद हैं...तुम्हारे मौसेरे भाई. तुम्हारे मालिकों का घर भी
तो चलना चाहिए.
उम्मीद करता हूँ कि अगले cat-scan में कुछ अच्छी चीज़ रिपोर्ट में निकल
के आयेगी और जिस जानवर का दिमाग़ लगा कर आप लोग काम कर रहे हो वह जल्दी ही उस जानवर को सधन्यवाद
वापस कर दोगे.
भवदीय
Rightly pointed out.The most negative But yahi bikta hai
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