मैं पनही बिरादरी से हूँ...शायद आपने इस बिरादरी
का नाम न सुना हो. मैं और मेरी बिरादरी के लोग अलग अलग प्रकार के होते हैं, जैसे
जूता, चप्पल, सैंडल, खड़ाऊं इत्यादि. मेरी बिरादरी को अंग्रेज़ अपनी भाषा में एक नाम
दे गए थे...Footwear. आशा है अब आप समझ गए होंगे.
मेरी कोई ख़ास इज़्ज़त नहीं है. मेरा स्थान लोगों
के पैरों में है जिससे सड़क की गंदगी उनके पैरों में न लगे. अधिकतर लोगों के घरों
के अन्दर घुसने तक की मुझे इजाज़त नहीं है. रसोई में तो सवाल ही नहीं उठता. मुझे छूने के बाद लोग हाथ धोते हैं. जैसा
मैंने कहा...वैसे तो मेरी कोई ख़ास इज्ज़त नहीं है मगर इधर कुछ
दिनों से मैं मुख्य समाचारों का हिस्सा बना हुआ हूँ. दो किस्से हुए एक के बाद एक
और दोनों ही बड़े लोगों के साथ.
दोनों मामलों में मैं बहुत शान के साथ by air
यात्रा कर रहा था...जिन चरणों की मैं रक्षा करता हूँ उनके मालिकों को जनता बहुत
बड़ा आदमी मानती है और इसीलिए मेरे मालिक लोग मुझे लेके हमेशा executive class में
ही चलते थे.
पहला मामला - कुछ शोरगुल हुआ तो मुझे लगा कुछ
गड़बड़ है. अचानक मालिक ने मुझे अपने हाथ में ले लिया. इतनी इज्ज़त मुझे तब ही मिलती
है जब मेरा हथियार की जगह प्रयोग होता है. हमारी बिरादरी में 9 नम्बर का जूता बहुत
deadly माना जाता है और इस नम्बर का धमकियों में भी प्रयोग होता है.
मालिक ने मुझे मिसाइल बना के फेंका. ग़ज़ब का
निशाना था. मैं बिलकुल ठिकाने पर चपका. बाद में पता चला कि मैं जिसके ऊपर जा कर
फटा था उसको तो जनता मेरे boss से भी ज्यादा बेहतर मानती थी और कुछ लोगों का तो
यहाँ तक कहना है कि मेरे boss की दुकान उसी की वजह से चलती है. 70-80 प्रतिशत लोग तो उसी की
वजह से boss का प्रोग्राम देखते हैं. जल्द ही boss को अपनी ग़लती का एहसास हो गया. उनको
अपनी दुकान का शटर धीरे-धीरे नीचे खिसकता नज़र आने लगा और वह लगे sorry बोलने. मगर
तब तक देर हो चुकी थी. एक बार मैं किसी के हाथ में आ गया तो फिर बिना खून पिए
म्यान में वापस नहीं जाता...और मैं खून पी चुका था फिर तो सॉरी-वॉरी डिक्शनरी में
ही शोभा देते हैं. एक तो मेरी कोई इज़्ज़त नहीं और फिर मुझे ही हथियार बना के दाग़ दिया...
करेले और नीम का निकाह. सामने वाले की डबल बेज्ज़ती. यही कारण है कि आपने लोगों को
जूता उतार के मारते तो देखा होगा पर पजामा उतार के मारते कभी नहीं देखा होगा
क्योंकि पजामे की मुझ से ज़्यादा इज़्ज़त है.
यह हादसा होते ही मीडिया को मसाला मिल गया और
हमको शोहरत.
दूसरे हादसे में जब मैं boss के हाथ में आया तो
मैं मिसाइल बनने की प्रतीक्षा करता रहा मगर यह क्या...boss ने तो मुझको सामने वाले
के सर पर बिठाने की कोशिश की. मैंने तो इस जन्म में सोचा भी न था कि कोई मुझे इतनी
इज़्ज़त दे सकता था. कहाँ हमारे पुरखों ने अपनी जिंदगी मालिकों के चरणों में ही
गुज़ार दी और कहाँ यह महान व्यक्ति मुझे किसी के सर पर बैठाने की कोशिश कर रहा है. इतना
emotional हो रहे थे वह कि जब एक बार में मैं सर पर फ़िट नहीं आया तो उन्होंने एक
नहीं...दो नहीं..तीन नहीं...पच्चीस बार कोशिश करी...पूरी ताक़त लगा दी. यहाँ तक कि
सामने वाले की माँ और बहन का आव्हान भी किया. पर भैय्या मैं ठहरा पैर के डिज़ाइन
का...सर में कैसे आता ? पब्लिक ने रोका न होता तो boss तो मुझे टोपी बना के ही
छोड़ते.
जब मीडिया में बात आई तो समझ में आया कि मैं कोई
टोपी-वोपी नहीं बना था...मुझको हथियार ही बनाया गया था. मेरे सोल ने मुझे धिक्कारा ‘अरे
मूर्ख !!! जूता-चप्पल का स्थान पैरों में ही है. तू election भी जीत जाए तो टोपी
नहीं बन सकता. हाथों में तू आता भी है तो एक गाली की अतिश्योक्ति बन के. औकात
में रहना सीख.’
बचपन में एक कहानी सुनते थे. एक राक्षस की जान
एक चिड़िया में बसती थी. चिड़िया की आँख फोड़ दो तो राक्षस की आँख फूट जाएगी...उसकी
टांग तोड़ दो तो राक्षस की टांग टूट जाएगी. आज उस चिड़िया को ego के नाम से जाना
जाता है और अधिकतर लोग इसमें अपनी जान अटका कर घूमते हैं. ज़रा सा भी आपने किसी की ego
को छू लिया, उसका राक्षस बाहर आ जाता है और वह जूता निकाल के ego की रक्षा में लग
जाता है. फिर जूते यह तय करते हैं कि किसने किसकी चिड़िया मारी. अब देखा आपने...कितना
महत्वपूर्ण है मेरा रोल ?
वह तो भला हो मीडिया वालों का जो उनको दूसरे
हादसे में भी मसाला मिला और मुझको शोहरत.
दोनों किस्सों में मेरे हथियार बनने का कारण एक
ही था...नशा. नशा बहुत ही ख़राब चीज़ है और सेहत के लिए तो हानिकारक है ही. पहले
किस्से में मालिक को कामयाबी का नशा था और दूसरे में राजनीति का. दोनों ही नशे आम जनता
की देन होते हैं... जब चाहें चढ़ा दे और जब चाहें उतार दे. जिस दिन जनता ने मयखाना
बदल लिया उस दिन के बाद न मय होगी न मुन्नी.... हम तो तुच्छ जूता हैं जूता ही
रहेंगे मगर ‘तुम रहोगे न तुम...’
मुझे ही देखो गए थे by air मगर लौटते पे
प्लेटफार्म की धूल चटा दी गई. किसी भी हवाईजहाज़ की सीढ़ी ने मुझको कदम न रखने दिया.
इतनी शोहरत के बाद हम बेइज्ज़तों की भी बेईज्ज़ती हो गई...
मालिकों !!! तुमको तो शोहरत बहुत पहले से मिली
हुई थी. तुम्हारी तो आदत भी पड़ गई है मगर मुझे आज ही मिली. ऊपर वाले से दुआ करता
हूँ कि इस घमंड को मेरे सर के ऊपर चढ़ कर मत बोलने देना. मेरी औकात बहुत छोटी है.
जनता या मीडिया मुझे कितना ही ऊंचा उठा दे, मुझे हर समय याद रखना है कि ultimately
मेरी जगह पावों में ही है और हमें down to earth ही रहना है.
पर मालिक !!! आप लोग आज एक जूते से सीख ले लो :
‘याद रख सिकंदर के हौसले तो
आली थे,
जब गया था दुनिया से दोनों
हाथ खाली थे.’
घमंड के नशे को कभी अपने पास भी मत आने दो वरना
जिस जनता ने तुमको इतना ऊंचा बिठाया है...दो मिनट में मेरे बाजू में बैठा देगी.
आपका चरणदास
Wah, maza aa gaya. Bahut khoob
ReplyDeleteThanks a lot
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